केंद्र सरकार(central government) ने वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट(Suprem Court) में एक जवाबी हलफनामा(affidavit) प्रस्तुत किया है. इस हलफनामे में सरकार ने कानून का समर्थन करते हुए स्पष्ट किया है कि पिछले एक सदी से वक्फ बाई यूजर को केवल पंजीकरण के आधार पर मान्यता दी जाती है, न कि मौखिक रूप से. सरकार ने यह भी कहा कि वक्फ कोई धार्मिक संस्था नहीं, बल्कि एक वैधानिक निकाय है. वक्फ संशोधन कानून के अनुसार, मुतवल्ली का कार्य धर्मनिरपेक्ष है, न कि धार्मिक. यह कानून चुने हुए जनप्रतिनिधियों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है, जिन्होंने इसे बहुमत से पारित किया है.

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सरकार ने स्पष्ट किया है कि वक्फ कानून 2025 से किसी भी संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है. उसने अदालत से अनुरोध किया है कि उच्च न्यायालय किसी प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक न लगाए. सरकार ने यह भी कहा कि अदालत को वक्फ मामले की पूरी सुनवाई करनी चाहिए और अंत में निर्णय लेना चाहिए, बिना किसी अंतरिम रोक के. इसके अलावा, सरकार ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के पास संवैधानिकता की जांच करने का अधिकार है, लेकिन संसद द्वारा पारित कानून पर रोक लगाना उचित नहीं है.

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केंद्र सरकार ने हलफनामे में ये बातें कही हैं –

सर्वोच्च अदालत में प्रस्तुत याचिकाओं में किसी विशेष मामले में अन्याय की कोई शिकायत नहीं की गई है, इसलिए यह किसी नागरिक अधिकार का मुद्दा नहीं बनता.

हिन्दू धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन से इसकी तुलना करना या समानता स्थापित करना उचित नहीं है.

वक्फ संशोधन कानून मुस्लिम समुदाय की भलाई और पारदर्शिता को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है, जिससे किसी संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता.

वक्फ राज्य बोर्डों और राष्ट्रीय परिषद की तुलना व्यक्तिगत चैरिटी से नहीं की जा सकती.

वक्फ संशोधन कानून यह स्पष्ट करता है कि वक्फ संपत्ति की पहचान, वर्गीकरण और नियमन कानूनी मानकों और न्यायिक निगरानी के अधीन होना चाहिए.

वक्फ कानून का विधायी ढांचा यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को न्यायालय की पहुंच से वंचित नहीं किया जाए.

वक्फ कानून यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों के संपत्ति के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और सार्वजनिक दान से संबंधित निर्णय निष्पक्षता और वैधता के दायरे में लिए जाएं.

इस कानून में किए गए संशोधनों का उद्देश्य वक्फ प्रबंधन में न्यायिक जवाबदेही, पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देना है.

वक्फ कानून एक मजबूत संवैधानिक आधार पर स्थापित है और यह नागरिक अधिकारों के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है.

इसके अंतर्गत अधिकृत वक्फ प्रबंधन के धर्मनिरपेक्ष और प्रशासनिक पहलुओं को वैध रूप से नियंत्रित करने का प्रावधान भी किया गया है.

 कानूनी रेगुलेशन ने मुस्लिम समुदाय की धार्मिक प्रथाओं का सम्मान करते हुए इबादत को अछूता रखा है.

वक्फ कानून पारदर्शिता, जवाबदेही, सामाजिक कल्याण और समावेशी शासन के सिद्धांतों को लागू करता है, जो संविधान के मूल्यों और सार्वजनिक हित के अनुरूप हैं.

संसद ने इस कानून को बनाने में अपने अधिकार क्षेत्र का सही उपयोग किया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि धार्मिक स्वायत्ता को कोई नुकसान न पहुंचे.

वक्फ कानून धार्मिक प्रबंधन को इस तरह से संचालित करता है कि यह धार्मिक स्वायत्तता का उल्लंघन न करे, साथ ही इबादत करने वालों और मुस्लिम समाज के विश्वास को भी बनाए रखे.

वक्फ कानून एक वैध और विधिसम्मत विधायी उपाय है, जो वक्फ संस्थाओं को सशक्त बनाता है.

यह कानून वक्फ प्रबंधन को संवैधानिक सिद्धांतों से जोड़ते हुए समकालीन समय में वक्फ के कार्यान्वयन को सुगम बनाता है. वक्फ परिषद और बोर्ड में 22 सदस्यों में से अधिकतम दो गैर-मुस्लिम होंगे.

केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि सरकारी भूमि को जानबूझकर या गलत तरीके से वक्फ संपत्ति के रूप में चिन्हित करना केवल राजस्व रिकॉर्ड को सही करने के लिए है, और सरकारी भूमि को किसी धार्मिक समुदाय की संपत्ति नहीं माना जा सकता.

इस बिल को पारित करने से पहले संयुक्त संसदीय समिति की 36 बैठकें हुईं, जिसमें 97 लाख से अधिक हितधारकों ने सुझाव और ज्ञापन प्रस्तुत किए. समिति ने देश के दस बड़े शहरों का दौरा कर जनता के विचार भी जाने.