पटना. भारत जैसे कृषि प्रधान देश में किसान की हालत देखकर देश के विकास संबंधी दावे अब बेमानी लगते है. सरकारों के द्वारा किसानों पर जितना ध्यान दिया गया उसका 10 प्रतिशत भी लाभ किसानों को नही मिला. हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान हर दल ने अपने-अपने घोषणापत्र में किसानों के लिए ढेरों सारे वादे किये लेकिन जमीनी हकीकत यही है की किसान अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के लिए हर दिन प्राकृत के साथ ही साथ सिस्टम से लड़ रहा है. अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहा है.

कैसे होगी किसानों की आमदनी दोगुनी

भारत की सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया था. न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने का वचन दिया था. लेकिन वे वादे केवल वादे बनकर ही रह गए. हमारे देश में अब भी किसानों की औसत आमदनी एक दरबान से भी काफी कम है. जिसमे अपने बच्चों के साथ परिवार का भरण-पोषण कर पाना तो दूर की बात है. पेट की भूख मिटा पाना भी मुश्किल है. विडंबना है कि भारत सरकार एवं राज्य सरकारों की तमाम कोशिशों बावजूद भी देश के किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं दिख रहा है. क्योंकि सिस्टम में बैठे रिश्वतखोर अधिकारी कागजों पर ही योजना तैयार कर सरकार को गुमराह करने में कामयाब हो जा रहे है. यही कारण है कि आमदनी दोगुनी की बात कौन कहे किसानों का लागत मूल्य ही मुश्किल से निकलता है. इस बदहाली के पीछे कहीं न कहीं सरकारी नीतियां ही जिम्मेदार हैं, जहां कृषि को कभी भी देश की उन्नति के मुख्यधारा में शामिल ही नहीं होने दिया गया.

सब्सिडी के नाम पर सरकारी कर्मचारी खेल रहे हैं खेल

किसानों को मिलने वाले बीज, खाद, कीटनाशक के नाम पर छिटपुट सब्सिडी का खेल कागजों पर सरकारी कर्मचारी आसानी से खेल रहे हैं. कृषि ऋण के अलावा किसानों के लिए आज भी कोई विशेष सरकारी सुविधा नहीं है. यही वजह है कि किसानों के सामने हमेशा रोजी रोटी का संकट बना रहता है. प्राकृतिक आपदा से फसल बर्बाद हो गई तो खेती के लिए लिया गया कर्ज न चुका पाने के कारण किसान या तो जमीन बेचने को बजबुर होते है. या निराशा में वह आत्मघाती कदम उठाते हैं.

कृषि पर निर्भर है देश की 70 प्रतिशत आबादी

देश की तकरीबन 70 फीसद आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है. देश की तरक्की में किसानों की भूमिका को कोई भी सरकार नकार नहीं सकती. उसके बाद भी किसानों को मात्र एक वोट बैंक के रूप में देखा जाता है. जिसके चलते आजादी के 77 साल बाद भी किसानों की माली हालात दिन प्रतिदिन और खराब होते जा रही है.

देश की अर्थव्यवस्था की धुरी हैं किसान

देश के अन्नदाता वोट बैंक से कहीं अधिक भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी हैं, जिनका विकास राष्ट्रीय संपन्नता का आधार है. सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए अनेक योजनाएं चलाई हैं. फिर भी उनकी आर्थिक स्थिति किसी से छिपी नहीं है. पिछले दो दशक में जो भी सरकारें आईं, उन्होंने कृषि क्षेत्र पर उचित ध्यान नहीं दिया. बेशक, कृषि क्षेत्र के लिए कई परियोजनाएं शुरू की गईं, लेकिन उनका क्रियान्वयन ठीक ढंग से नहीं किया गया. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय बागबानी मिशन जैसी कई योजनाएं चल रही हैं, लेकिन सही तरीके से क्रियान्वयन न होने की वजह से किसानों को उनका जितना लाभ मिलना चाहिए उतना नहीं मिल पाया. विडंबना है कि सरकार द्वारा संचालित कई योजनाओं के बारे में तो किसानों को पता तक नहीं है. यानी कागज पर योजनाएं तो हैं, लेकिन किसानों की पहुंच से कोषों दूर हैं.

आपको बताते चले कि एक अनुमान के अनुसार अगले 20 वर्ष में भारत की आबादी लगभग एक अरब साठ करोड़ हो जाएगी. ऐसे में सभी को भोजन उपलब्ध कराना देश के सामने एक बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि कृषि क्षेत्र और किसान जिस संक्रमण के दौर से गुजर रहा है. आने वाले समय में खेती करने वाला कोई नहीं रह जायेगा.

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