कुमार इंदर, जबलपुर।  मध्य प्रदेश में दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में मुकाबला 50-50 का रहा। एक सीट बुधनी पर जहां बीजेपी की जीत हुई, तो वहीं दूसरी सीट विजयपुर पर कांग्रेस ने अपना कब्जा जमा लिया। दोनों ही सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी थी। बता दें कि बुधनी सीट शिवराज सिंह चौहान के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद खाली हुई थी। वहीं, विजयपुर सीट पर कांग्रेस से विधानसभा चुनाव जीते रामनिवास रावत के बीजेपी में शामिल होने के बाद उपचुनाव की स्थिति बनी थी।

बुधनी सीट बीजेपी क्यों जीती?

बुधनी विधानसभा सीट पर भाजपा के कब्जा बरकरार है। दरअसल बुधनी सीट जीतने की सबसे मुख्य वजह शिवराज सिंह चौहान है। बुधनी विधानसभा शिवराज सिंह चौहान की सीट रही है, ऐसे में पहले से ही संभावना जताई जा रही थी कि यह सीट बीजेपी की ही कब्जे में जाएगी और हुआ भी वैसा ही। हालांकि इस सीट पर जीत को लेकर कॉन्फिडेंट होने के बाद भी बीजेपी ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जहां पर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उपचुनाव के दौरान बुधनी में डेरा डाले रखा तो वहीं पर मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने भी रोड शो कर बीजेपी प्रत्याशी के लिए वोट मांगे।  तो प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी रैली करके बुधनी में जोर आजमाइश की। यही वजह रही कि सारे बड़े नेताओं ने यहां भरपूर भरपूर ताकत झोंक दी। बुधनी फिर से बीजेपी के कब्जे में वापस आ गई। हालांकि सीट पर कांग्रेस ने भी कोई कमजोर आजमाइश नहीं कि कांग्रेस के सारे बड़े नेता बुधनी उपचुनाव पर ताकत झोंकते नजर आए।

बुधनी में जीत का अंतर कम क्यों?

13 नवंबर को बुधनी सीट पर उपचुनाव की वोटिंग हुई थी। बुधनी सीट पर पिछले चुनाव के मुकाबले वोट प्रतिशत में इस बार कमी आई थी। उपचुनाव में 77.32 प्रतिशत वोटिंग हुई, जो 2023 विधानसभा चुनाव में लगभग 84.86 प्रतिशत थी हालांकि, चुनाव के दौरान दोनों की प्रमुख पार्टियों के दिग्गज नेताओं ने यहां चुनाव प्रचार किया था। शिवराज और उनके बेटे कार्तिकेय भी सक्रिय भूमिका में थे उसके बावजूद जीत का अंतर कम हो गया। जिससे जाहिर होता है कि शिवराज सिंह चौहान के प्रति जो जनता का प्रेम 2023 के विधानसभा चुनाव में दिखा था वह बाय इलेक्शन में उतना नजर नहीं आया। वहीं, कांग्रेस से जीतू पटवारी सहित अन्य नेताओं ने भी कमान संभाल रखी थी।

विजयपुर में नहीं मिल पाई विजय

लोकसभा चुनाव में पाला बदलकर बीजेपी में शामिल हुए वन मंत्री रामनिवास रावत को बड़ा झटका लगा है। विजयपुर में रामनिवास रावत की कांग्रेस उम्मीदवार मुकेश मल्होत्रा से करारी हार हुई है। शुरुआती रुझान में पीछे होने के बाद रामनिवास रावत ने बाद में बढ़त जरूर बनाई, लेकिन ये बढ़त ज्यादा समय तक बरकरार नहीं रह पाई और आखिर में रामनिवास रावत को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस उम्मीदवार मुकेश मल्होत्रा ने उन्हें करीब 6 हजार से अधिक वोटों से हराया है। कांग्रेस को श्योपुर मुरैना लोकसभा सीट पर मिली हार का बदला कांग्रेसियों ने मिलकर ले लिया।

काम नहीं आई दबंगई और रणनीति

6 बार विधायक रहे हैं रामनिवास रावत की गिनती मध्य प्रदेश के बड़े नेताओं में होती है। वो 6 बार विधानसभा के सदस्य रहे हैं। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस से उनकी नाराजगी सामने आई थी। मुरैना-श्योपुर लोकसभा सीट से सत्यपाल सिंह सिकरवार को मिलने की वजह से वो नाराज थे और यही वजह है कि कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए। रामनिवास 8 बार विधानसभा और 2 बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। लेकिन इस बार जनता को उनकी दबंगई पसंद नहीं आई, जबकि कहा जाता है कि रामनिवास रावत ने अपने पसंदीदा अफसरों की तैनाती करवाई, रावत ने जीत के कई हथकंडे अपनाए बावजूद वो कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा से चुनाव हार गए।

कांग्रेस माहौल बनाने में रही सफल 

विजयपुर उपचुनाव में मिली कांग्रेस की जीत को लेकर ही कहा जा सकता है कि कांग्रेस अपना माहौल बनाने में कामयाब रही। कांग्रेस ने उपचुनाव के पहले विजयपुर में नए अफसर के ट्रांसफर का मुद्दा जोर-जोर से उठाया और कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने में सफल रही। दूसरा मुद्दा मतदान वाले दिन क्षेत्र में हुई दबंगई की घटनाओं को भी कांग्रेस ने जोर शोर से उठाया और उसे भी भुनाने में कांग्रेस सफल रही। बीजेपी प्रत्याशी रामनिवास रावत ने मंत्री बनने  के बाद सौगातों का पिटारा खोला लेकिन जनता को यह भी रास नहीं आया। बीजेपी ने मंत्री दर्जा देकर सीताराम आदिवासी की नाराजगी दूर करने का प्रयास किया, लेकिन भाजपा की यह रणनीति भी काम नहीं आई।

विजयपुर में बीजेपी की हार के 5 कारण

1. यह सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही, बीजेपी से उम्मीदवार रावत पर खुद कांग्रेसी होने की छाप रही है।

2. कांग्रेस का आदिवासी कार्ड काम कर गया, कांग्रेस ने मुकेश मल्होत्रा को सीट देकर आदिवासी वोट पर एक तरह से कब्जा जमा लिया।

3. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य का पूरे उप चुनाव के दौरान दूरी बनाए रखना भी कहीं न कहीं हार का एक कारण बना यही वजह रही कि उनके समर्थक भी इस सीट पर प्रचार के लिए नहीं गए।

4. बीजेपी के अंदरखाने में ही गुटबाजी की चर्चा रही, जिनको सीट की उम्मीद थी उन्होंने रावत के लिए काम नहीं किया।

5. वोटिंग के दो दिन पहले हुईं हिंसा में रावत समाज का नाम आने से आदिवासी समाज में मैसेज गया और उसका नुकसान भी बीजेपी को उठाना पड़ा।

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