रायपुर. ठेकेदार, बिचौलिये और अफसरों के बने सिंडिकेट ने राज्य के स्वास्थ्य महकमे का स्वास्थ्य पूरी तरह से बिगाड़ दिया है. सरकार की नाक के नीचे नियम कायदों की धज्जियां उड़ाकर अफसर, ठेकेदार की जेब भर रहे हैं. अफसर ठेकेदार की खिदमत में है और ठेकेदार अफसरों की. अफसरों ने जितनी रकम ठेकेदार की जेब में डाली है, उतनी रकम से एक बड़ा सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल खड़ा किया जा सकता था. ठेकेदार, बिचौलिये और अफसरों के इस सिंडिकेट का खामियाजा राज्य के उस तबके को उठाना पड़ रहा है, जो अपनी बीमारियों का इलाज सरकारी अस्पतालों में ढूंढते हैं. सरकार की आंख पर पट्टी बांधकर लूट खसोट किए जाने के इस कारोबार पर अब सख्ती बरतने की दरकार है.

इस पूरे मामले का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि जिस स्वास्थ्य महकमे ने पूर्ववर्ती सरकार में की गई संदेहास्पद खरीदी के एवज में होने वाले भुगतान पर रोक लगाई थी, उसी महकमे ने अपने ही आदेश को बदलकर भुगतान जारी करने का रास्ता बना दिया, हालांकि मंत्री के हस्तक्षेप के बाद अब करीब चार सौ करोड़ रुपए के भुगतान पर रोक लगाए जाने की खबर है. चर्चा है कि सरकार इस मामले की उच्च स्तरीय जांच करा रही है.

दवा खरीदी में झोल

स्वास्थ्य विभाग सरकारी अस्पतालों में उपयोग में आने वाली दवा, मेडिकल उपकरण और फर्नीचर की 90 फीसदी खरीदी छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विस कारपोरेशन लिमिटेड (सीजीएमएससी) से करता है, जबकि 10 फीसदी खरीदी जिला स्तर पर सीएमएचओ के माध्यम से की जाती है, लेकिन ठेकेदार, बिचौलिये और अफसरों के सिंडिकेट ने पूर्ववर्ती भूपेश सरकार के दौरान यह आंकड़ा 60-40 फीसदी पर लाकर खड़ा कर दिया. यानी करीब 60 फीसदी खरीदी सीजीएमएससी और 40 फीसदी खरीदी सीएमएचओ के माध्यम से की जाने लगी. इससे जुड़े सवाल पर सीजीएमएससी की एमडी पद्मिनी भोई कहती हैं कि खरीदी का यह प्रतिशत निर्धारित करने की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग के डायरेक्टर की है. सीजीएमएससी को डायरेक्टर की ओर से प्रस्ताव भेजा जाता है. उस प्रस्ताव के अनुपात में ही खरीदी की जाती है. इस पूरे मामले में जब स्वास्थ्य विभाग के संचालक ऋतुराज रघुवंशी का पक्ष लेने की भी कोशिश की गई. उनके मोबाइल नंबर पर फोन कर उनका पक्ष लिए जाने का प्रयास किया गया, मगर उन्होंने फोन नहीं उठाया.

कृत्रिम मांग खड़ी की गई

विभागीय सूत्र बताते हैं कि कृत्रिम मांग खड़ी कर गैर जरूरी सामग्रियों की बेहिसाब खरीदी की गई. जिला अस्पतालों में डिमांड नहीं होने के बावजूद करोड़ों रुपए की सप्लाई की जाती रही. कई मामले ऐसे भी हैं, जिसमें ठेकेदार को वर्क आर्डर जारी किया गया, मगर सप्लाई कागजों पर ही कर दी गई और उसका भुगतान ले लिया गया. भंडार कच्चा माल के नाम पर ऐसी सामग्रियों की खरीदी कर अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भेज दिया गया, जिसकी जरूरत नहीं थी. जांच के नाम पर जिलों में उन सामग्रियों की सप्लाई की गई, जिन्हें लेकर विभागीय अफसरों ने लिखित में यह लिखकर दिया कि बगैर डिमांड के सप्लाई की गई है. इनमें वैसी सामग्रियां भी थी, जिनके इस्तेमाल के लिए जरूरी मशीनें अस्पतालों में उपलब्ध नहीं थी.

किसका है संरक्षण?

पूर्ववर्ती सरकार में हजारों करोड़ का ठेका लेने वाली कंपनी नेताओं के संरक्षण के बूते शिखर पर चढ़ती चली गई. नई सरकार में जब रुका हुआ पैसा फंसता दिखा, तो नया माई बाप ढूंढ लिया गया. विभाग में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि संगठन के एक नेता पहले इस ठेका कंपनी को ब्लैक लिस्ट करने पर आमादा थे, लेकिन अचानक से उनके बदलते रुख ने कई सवाल खड़े कर दिए. संगठन नेता की खामोशी हकीकत को बयां करने के लिए काफी है. पहले विरोध था, अब संरक्षण. आला अधिकारी बताते हैं कि ठेका कंपनी के रुके हुए भुगतान को जारी करने संगठन नेता की दिलचस्पी बढ़ गई है. इसी तरह चर्चा इस बात की भी है कि एक ब्यूरोक्रेट अपना भविष्य ठेका कंपनी के रुके भुगतान को जारी कराए जाने से जोड़कर देख रहे हैं. चर्चा जोरों पर है कि इस एवज में मिलने वाली हिस्सेदारी उन्हें मन मुताबिक जगह पर बिठाने में बड़ी भूमिका निभा सकती है.

जांच रिपोर्ट का इंतजार

स्वास्थ्य महकमे में हुई बड़ी गड़बड़ियों के बीच स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने यह माना है कि दवा, मशीन और मेडिकल इक्विपमेंट के नाम पर कई करोड़ रुपयों की आर्थिक गड़बड़ी की गई है. उन्होंने कहा है कि इस पूरे मामले की जांच कराई जा रही है. जांच रिपोर्ट आते ही इस पर सख्त फैसला लिया जाएगा.

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