रायपुर. स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम के विवादों में आए अपने ओएसडी राजेश सिंह को हटा दिया गया है. राज्य शासन ने इसका आदेश जारी कर दिया है. मंत्री प्रेम साय सिंह टेकाम ने लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में राजेश सिंह को हटाने की पुष्टि की है.
पिछले दिनों राजेश सिंह उस वक्त विवादों में आए थे, जब स्कूल शिक्षा विभाग में तबादले को लेकर जमकर हंगामा मचा था. कांग्रेस नेताओं की शिकायत मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक पहुंची थी. इन शिकायतों के बाद मुख्यमंत्री बेहद नाराज बताए जा रहे थे. तब ही कयास लगा लिए गए थे कि जल्द से जल्द राजेश सिंह को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है.
राजेश सिंह को लेकर कांग्रेस के विधायकों ने भी मोर्चा खोल दिया था. उन्हें लेकर यह शिकायत सामने आई थी कि तबादलों के जिन आवेदनों पर मंत्री ने खुद मार्क किया था, उन्हें भी नजरअंदाज कर रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया. कांग्रेस नेताओं का आरोप था कि बड़े-बड़े मंत्रियों की सिफारिशों को स्कूल शिक्षा विभाग ने कुड़े में फेंक दिया है जबकि भाजपा शासनकाल में जिन अधिकारियों ने बड़े-बड़े घोटाले किए, जिनके खिलाफ कांग्रेस के पदाधिकारियों ने चुनाव में भाजपा के लिए खुलकर काम करने के आरोप लगाए थे. उन्हें न सिर्फ मनचाही पोस्ट और जगह देकर उपकृत किया गया. बल्कि कई लोगों को महत्वपूर्ण अधिकारी के रुप में बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई. आरोप था कि जिन लोगों पर ओएसडी की कृपा बरसी है, उनमें उनकी पत्नी शामिल हैं. राजेश सिंह की पत्नी नवनीता सिंह को शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से उठाकर सीधे छत्तीसगढ़ ओपन स्कूल का पंजीयक बना दिया गया है. जबकि सरगुजा के एक मंत्री के बेहद करीबी व्यक्ति की बहन का डिमोशन कर दिया गया. आरोप यह भी लगा कि तबादलों में भाजपा से जुड़े अधिकारियों पर जमकर कृपा बरसी है. भाजपा के पूर्व नेता स्वर्गीय रवि त्रिपाठी के रिश्तेदार को सरगुजा संभाग के एक जिले का मिशन समन्वयक समग्र शिक्षा बना दिया गया. जबकि उनके ऊपर चुनाव में भाजपा के लिए खुलकर प्रचार करने का आरोप लगा था. इसी तरह भाजपा नेता भीमसेन अग्रवाल के रिश्तेदार को लेकर शिकायत की गई थी. कांग्रेस कार्यकर्ताओं के शिकायत पर सूरजपुर जिले से उसे हटाया गया था. लेकिन कुछ महीने बाद ही उसे जिला परियोजना अधिकारी बनाकर उपकृत कर दिया गया.
इसी तरह भाजपा के एक बड़े नेता को सरगुजा के ही एक जिले में समग्र शिक्षा का सहायक कार्यक्रम समन्वयक बना दिया गया था. बस्तर संभाग में भी एक एक मंत्री की आपत्ति को दरकिनार करके एक अधिकारी को बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई. सरकार के कई मंत्री भी मान रहे थे कि शिक्षा विभाग में तबादलों से सबको संतुष्ट नहीं किया जा सकता. चूंकि शिक्षाकर्मी से शिक्षक बने लोगों के तबादले पहली बार हो रहे थे. जब मंत्रियों ने तबादले के लिस्ट को देखा तो उनके होश फाख्ता हो गए. जो आवेदन उनकी सिफारिश से गई थी, उनमें से बेहद ज़रुरी आवेदनों पर कार्रवाई नहीं हुई. जबकि जिन अधिकारियों के खिलाफ उन्होंने पंद्रह साल तक लड़ाई लड़ी, वे मनवांछित जगह पा गए थे.