सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हिरासत में हिंसा और मौत व्यवस्था पर एक “धब्बा” है और देश इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी से संबंधित एक स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इस मामले में पारित अपने आदेश का हवाला दिया और कहा कि राजस्थान में आठ महीनों में पुलिस हिरासत में 11 मौतें हुई हैं। बेंच ने कहा, “अब देश इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। यह व्यवस्था पर एक धब्बा है। आप हिरासत में मृत्यु नहीं होने दे सकते।”

क्या है मामला?

सितंबर में, शीर्ष अदालत ने मीडिया की एक खबर का स्वतः संज्ञान लिया था जिसमें कहा गया था कि 2025 के पहले आठ महीनों में राजस्थान में पुलिस हिरासत में 11 लोगों की मौत हुई। इनमें से सात मामले उदयपुर संभाग से आए थे। एक अलग मामले में, शीर्ष अदालत ने 2018 में मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोई भी हिरासत में हुई मौतों को न तो उचित ठहरा सकता है और न ही उचित ठहराने का प्रयास कर सकता है। पीठ ने केंद्र से यह भी पूछा कि उसने इस मामले में अनुपालन हलफनामा क्यों नहीं दाखिल किया है। न्यायमूर्ति विक्रमनाथ ने पूछा, “केंद्र इस अदालत को बहुत हल्के में ले रहा है। क्यों?”

मेहता ने कहा कि वह स्वतः संज्ञान मामले में पेश नहीं हो रहे हैं, लेकिन कोई भी अदालत को हल्के में नहीं ले सकता। उन्होंने कहा कि केंद्र तीन सप्ताह के भीतर अनुपालन हलफनामा दाखिल करेगा।

CCTV लगाने के पुराने आदेश और धीमी प्रगति

सुप्रीम कोर्ट ने 2018 और 2020 में आदेश दिया था कि, सभी पुलिस थानों, सीबीआई, ईडी, एनआईए जैसी केंद्रीय एजेंसियों के दफ्तरों में फुल कवरेज वाले सीसीटीवी कैमरे और रिकॉर्डिंग सिस्टम लगाएं। लेकिन कोर्ट को बताया गया कि, केवल 11 राज्यों ने ही अब तक अपनी रिपोर्ट दाखिल की है। कई राज्य और केंद्र के कई विभागों ने अब तक कोई जानकारी नहीं दी। तीन केंद्रीय एजेंसियों में सीसीटीवी लग चुके हैं, लेकिन बाकी अभी भी पीछे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश की तारीफ

वहीं शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मध्य प्रदेश ने बेहद अच्छा काम किया है, हर पुलिस स्टेशन और चौकी को डिस्ट्रिक्ट कंट्रोल रूम से लाइव जोड़ा गया है। इसे बेंच ने काबिल-ए-तारीफ बताया।

अमेरिका की मिसाल और ‘ओपन एयर जेल’ की चर्चा

मामले की सुनवाई के दौरान बातचीत में अमेरिका के मॉडल का जिक्र आया, वहां सीसीटीवी की लाइव स्ट्रीमिंग भी होती है और कुछ निजी जेलें भी हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को बताया कि कुछ समय पहले एक सुझाव आया था कि सीएसआर फंड से प्राइवेट जेल बनाई जाएं। इस पर कोर्ट ने कहा कि वह पहले से ही ओपन एयर प्रिजन मॉडल पर एक केस देख रहा है, जो भीड़भाड़ की समस्या, जेलों में हिंसा जैसे मुद्दों को कम कर सकता है।

कोर्ट की सख्त चेतावनी

कोर्ट ने आदेश दिया, जो राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अभी तक रिपोर्ट नहीं दे पाए हैं, उन्हें तीन हफ्तों में हर हाल में अपनी जानकारी देनी होगी। अगर रिपोर्ट नहीं दी गई, तो उन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के गृह विभाग के प्रमुख सचिव को कोर्ट में पेश होना पड़ेगा। केंद्र से कोर्ट ने कहा कि यदि केंद्रीय एजेंसियों ने पालन नहीं किया तो उनके निदेशक को बुलाया जाएगा। कोर्ट ने पूरे मामले को 16 दिसंबर के लिए सूचीबद्ध किया है। तब तक सभी राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और केंद्र को अपनी-अपनी रिपोर्ट हर हाल में जमा करनी होगी।

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