सीकर-लोहारू रेलवे खंड पर नवलगढ़-मुकुंदगढ़ के बीच स्थित बलवंतपुरा-चैलासी रेलवे स्टेशन. यह देश का इकलौता रेलवे स्टेशन है, जिसका निर्माण ग्रामीणों ने खुद के खर्च पर करवाया. रेलवे ने एक रुपया खर्च नहीं किया. पांच गांवों के लोगों के सहयोग से स्टेशन के निर्माण पर 7 लाख 82 हजार रुपए खर्च हुए और यह दो साल में बनकर तैयार हो गया.
आज यहां हर लोकल गाड़ी रुकती है. पांच पंचायतों के ग्रामीणों ने मिलकर स्टेशन का निर्माण कराया था. 17 साल बाद अब ग्रामीणों ने इस हॉल्ट स्टेशन को फ्लैग स्टेशन बनवाने की जिद़ ठानी है. ताकि एक्सप्रेस गाड़ियां भी रुक सकें.
रेलवे स्टेशन बनवाने जैसे असंभव काम को संभव करने के लिए परदे के पीछे काम करने वाले रेलवे के तत्कालीन सेक्शन ऑफिसर सांवरमल जांगिड़ का कहना है कि एक्सप्रेस गाड़ियों के ठहराव के लिए इसे फ्लेग स्टेशन का दर्जा मिलना जरूरी है. छोटे से गांव में स्टेशन बनाने के की बात 1992 में हुई थी।. 10 साल तक पत्राचार चला और अंतत: 2 अगस्त 2002 को रेलवे ने स्टेशन की मंजूरी दे दी. 3 जनवरी 2005 को यहां पहली ट्रेन रुकी थी.
ग्रामीणों ने ही शुरू के तीन साल तक स्टेशन का रखरखाव खर्च भी उठाया
स्टेशन बनकर तैयार होने के बाद 3 जनवरी 2005 को यहां पर पहली ट्रेन रुकी थी. तब यह ट्रैक मीटर गेज था. शुरुआत के करीब तीन साल तक ग्रामीणों ने ही रेलवे स्टेशन का पूरा खर्च वहन किया. स्टेशन के पास स्थित सरस्वती स्कूल के निदेशक बीरबलसिंह गोदारा ने यात्रियों के लिए पानी की व्यवस्था की.
शेखावाटी इंजीनियरिंग कॉलेज के संचालक शीशराम रणवा ने यात्रियों के बैठने के लिए हॉल का निर्माण करवाया. शुरु के दो साल तक यहां ग्रामीण ही स्टेशन अधीक्षक, बाबू की भूमिका में रहे. हालांकि बाद में रेलवे ने यहां पर टिकट एजेंट नियुक्त कर दिया. जो यात्रियों को टिकट देता है.