हेमंत शर्मा, इंदौर। एक गरीब मजदूर की हत्या हुई…परिजन रोते-बिलखते रहे…थाने के बाहर इंसाफ की भीख मांगते रहे, लेकिन पुलिस ने कानों में तेल डाल रखा था। जब हमने इस मामले पर पुलिस से सवाल किया तो इंदौर के एडिशनल डीसीपी आलोक शर्मा ने पत्रकारों से बेशर्मी के साथ कह डाला था-“औकात नहीं है तो बात मत करो।” यह वही केस है जिसमें अब आजाद नगर थाने का सब इंस्पेक्टर धर्मेंद्र राजपूत लोकायुक्त के हत्थे चढ़ गया है। वह आरोपी से ₹1 लाख की रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा गया।

पुलिस पर आरोप लगा था हत्या हुई, ठेकेदार को चाय पिलाकर छोड़ा गया

मामला आजाद नगर थाना क्षेत्र का है। एक सिक्योरिटी एजेंसी के गार्ड ने मुसाखेड़ी पुल के पास युवक को बेरहमी से पीट दिया था, जिससे उसकी मौत हो गई। परिजनों ने खुलेआम इलाके के एक ठेकेदार पर भी आरोप लगाए। लेकिन एफआईआर की मांग करने के बावजूद पुलिस ने कार्रवाई नहीं की। उल्टा, जिस ठेकेदार पर शक था, उसे थाने में बुलाया गया, चाय पिलाई गई और आराम से रवाना कर दिया गया।

औकात बताने वाले एडिशनल डीसीपी के क्षेत्र का असली चेहरा

जब इस पूरे खेल पर हमने सवाल उठाए कि आखिर गरीब के इंसाफ की जगह ठेकेदार को वीआईपी ट्रीटमेंट क्यों दिया जा रहा है, तो एडिशनल डीसीपी आलोक शर्मा ने पत्रकारों से कहा-“औकात नहीं है तो बात मत करो।” यह बयान इंदौर पुलिस के असली चेहरे को दिखाने के लिए काफी था। उस वक्त भी परिजनों ने पुलिस पर सीधा लेन-देन का आरोप लगाया था।

अब लोकायुक्त ने पकड़ा रिश्वतखोर सब इंस्पेक्टर

उसी केस में अब बड़ा खुलासा हुआ है। एजेंसी संचालक रामचंद्र सिंह तोमर ने हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली थी। इसके बाद सब इंस्पेक्टर धर्मेंद्र राजपूत ने मामले में मदद करने के नाम पर 2 लाख की मांग की। सौदा डेढ़ लाख रुपए में तय हुआ। पहली किस्त के रूप में जैसे ही 1 लाख थमाया गया, लोकायुक्त की टीम ने थाने में ही छापा मारकर सब इंस्पेक्टर को रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया।

लल्लूराम डॉट कॉम के सवाल अब साबित हुए

जिस बात पर लल्लूराम डॉट कॉम ने पहले सवाल उठाए थे, वही आज सच साबित हो गया। थाने में लेन-देन चल रहा था। गरीब की हत्या के मामले में इंसाफ की जगह सौदेबाजी हो रही थी। अब जब लोकायुक्त ने रिश्वतखोर सब इंस्पेक्टर को दबोच लिया, तो साफ है कि हमारे सवाल सही थे और पुलिस अफसर खुद संदिग्ध भूमिका में थे।

बड़े अफसर अब भी सुरक्षित क्यों?

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस थाने से जुड़े बड़े अफसरों पर कार्रवाई कब होगी? एडिशनल डीसीपी आलोक शर्मा पर पहले भी कई शिकायतें वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंची हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। क्या वाकई उनकी कोई ऊपरी सेटिंग है, जिसकी वजह से वे हर बार बच निकलते हैं?

थाना बना सौदेबाजी का अड्डा

यह मामला बताता है कि गरीब की हत्या हो, चाहे परिजन न्याय मांगते रह जाएं… थाना अब इंसाफ का नहीं, बल्कि सौदेबाजी का अड्डा बन चुका है। और जब पत्रकार इस सौदेबाजी पर सवाल करते हैं, तो उन्हें औकात बताई जाती है। लोकायुक्त की कार्रवाई ने अब इस खेल का पर्दाफाश कर दिया है, लेकिन जनता पूछ रही है-क्या अब बड़े अफसरों पर भी कार्रवाई होगी या फिर यह सिस्टम चुपचाप ढंक दिया जाएगा?

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