नई दिल्ली. नाबालिग बेटी के साथ दो साल तक बार-बार दुष्कर्म करने के मामले में हाईकोर्ट ने पिता को दोषी करार देते हुए निचली अदालत के बरी करने के फैसले को पलट दिया है. निचली अदालत ने मामले की रिपोर्ट में देरी के आधार पर पिता को सभी आरोपों से बरी कर दिया था.

 न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा कि पीड़िता को अपने पिता के बजाय एक “राक्षस” मिला. पुलिस, पीड़िता, उसकी मां और भाई की अपील को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा कि जब पहली बार दुष्कर्म हुआ, तब पीड़िता केवल 10 साल की थी. उसने लगभग दो साल तक अपने पिता द्वारा यौन उत्पीड़न को सहन किया. अदालत ने कहा कि वह पुलिस के पास तभी गई जब उसने देखा कि उसके पिता ने अपनी हरकतों में सुधार करने के बजाय उसकी मां और भाई को पीटा है. अदालत ने माना कि पीड़िता की गवाही पूरी तरह से विश्वसनीय थी.

 अदालत ने कहा कि स्पष्ट कारणों के मद्देनजर बरी करने के आदेश को उलटने में कोई हिचकिचाहट नहीं है. ट्रायल कोर्ट ने 2013 में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद जून 2019 में पिता को बरी कर दिया था. अदालत ने मामले को सजा पर बहस के लिए 24 मई को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया. अदालत ने यह भी कहा कि यौन उत्पीड़न की ऐसी घटनाएं अक्सर रिपोर्ट नहीं की जाती हैं क्योंकि यह पीड़िता की छवि और प्रतिष्ठा पर असर डालती है. पीड़िता ने दावा किया था कि उसने अपनी मां को इस बारे में बताया था, लेकिन मां ने इसे नजरअंदाज कर दिया था.