दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High Court) ने राजधानी के दो सरकारी स्कूलों में लंबे समय से प्रिंसिपल की नियुक्ति ना होने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि जैसे बिना मुखिया के परिवार का संचालन कठिन होता है, वैसे ही बिना प्रिंसिपल किसी स्कूल का सुचारु संचालन संभव नहीं है। अदालत ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि इन दोनों स्कूलों में फौरन नियमित प्रिंसिपल की नियुक्ति सुनिश्चित की जाए।
अदालत ने यह भी कहा कि स्कूल छात्रों की बुनियादी शिक्षा का केंद्र होते हैं और वहाँ नेतृत्व पद खाली रहने से प्रशासनिक और शैक्षणिक कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सरकार को अब अगली सुनवाई से पहले नियुक्ति प्रक्रिया से संबंधित रिपोर्ट दाखिल करनी होगी।
चीफ जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि जिस तरह पहले इन स्कूलों में शिक्षकों की कमी थी और अदालत के हस्तक्षेप के बाद शिक्षकों की नियुक्ति पूरी की गई, अब प्रिंसिपल का पद खाली होने से स्कूलों का प्रशासन प्रभावित हो रहा है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि बिना प्रिंसिपल कई अकादमिक और प्रबंधन से जुड़े कार्य रुक जाते हैं, जिससे छात्रों की पढ़ाई पर सीधा असर पड़ता है। अदालत ने दिल्ली सरकार और शिक्षा विभाग को निर्देश दिया कि दोनों स्कूलों में तत्काल प्रिंसिपल नियुक्त किए जाएं और सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में ऐसे महत्वपूर्ण पद लंबे समय तक खाली न रहें।
सुनवाई के दौरान शिक्षा निदेशालय (डीओई) ने हाईकोर्ट में दायर अपने हलफनामे में स्वीकार किया कि संबंधित दोनों सरकारी स्कूलों में जुलाई 2025 से प्रिंसिपल के पद खाली हैं। निदेशालय ने यह भी कहा कि उन्होंने अन्य विषयों के शिक्षकों की कमी को अधिकांशतः पूरा कर दिया है और स्कूलों में नियमित पढ़ाई जारी है। हालांकि, बेंच ने इस तर्क पर असहमति जताते हुए कहा कि सिर्फ शिक्षकों की नियुक्ति से स्कूल की प्रशासनिक और शैक्षणिक संरचना पूरी नहीं हो जाती। अदालत ने टिप्पणी की कि “अन्य विषयों के शिक्षक नियुक्त करना सही कदम है, लेकिन प्रिंसिपल के बिना पूरी व्यवस्था अधूरी दिखती है।” कोर्ट ने सरकार से स्पष्ट निर्देश दिए कि प्रिंसिपल नियुक्ति की प्रक्रिया में अब और विलंब न हो।
स्कूल शुरू कराने के लिए करना पड़ा संघर्ष
यह याचिका हमारा प्रयास सामाजिक उत्थान नामक गैर सरकारी संगठन की ओर से वकील अशोक अग्रवाल के माध्यम से दायर की गई थी। याचिका में बताया गया था कि प्रेम नगर, किराड़ी स्थित सर्वोदय बाल विद्यालय और सर्वोदय कन्या विद्यालय की स्कूल इमारत का निर्माण वर्ष 2009 में शुरू हुआ और 2019 में भवन तैयार हो गया, लेकिन पानी और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण स्कूल को चालू नहीं किया जा सका।
याचिका के अनुसार, स्थिति यह रही कि 2025 तक ये स्कूल बंद पड़े रहे, जिस पर हाईकोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई। अदालत के निर्देश और सख्त रुख के बाद ही 1 जुलाई 2025 से इन स्कूलों को शुरू किया गया और छात्रों का नामांकन कराया गया।
अदालत के दखल पर शिक्षकों की तैनाती
हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इन दोनों स्कूलों में कक्षाएं तो शुरू कर दी गईं, लेकिन स्टाफ की भारी कमी बनी रही। रिकॉर्ड के अनुसार, एक स्कूल में 1,709 छात्र नामांकित हैं और वहां 65 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन केवल 35 शिक्षक ही नियुक्त किए गए। वहीं दूसरे स्कूल में 1,702 छात्र पढ़ रहे हैं, जहाँ 62 स्वीकृत पदों के मुकाबले सिर्फ 13 शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी।
शिक्षकों की कमी के चलते अभिभावकों ने मामला फिर से हाईकोर्ट में उठाया, जिसके बाद अतिरिक्त शिक्षक तैनात किए गए। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि दोनों स्कूलों में आज भी प्रिंसिपल के पद खाली हैं। अदालत ने कहा कि स्कूल का प्रशासनिक और शैक्षणिक नेतृत्व बिना प्रिंसिपल के अपूर्ण रहता है और ऐसे में शिक्षकों की नियुक्ति भी पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पाती।
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