देवभूमि उत्तराखंड के चमोली का बंशी नारायण मंदिर हिमालय की गोद में स्थित एक ऐसा मंदिर है, जो अपनी खास विशेषता के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है. इस मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक दिन रक्षाबंधन के दिन ही खोले जाते हैं. यह मंदिर 364 दिन बंद रहता है, जिससे भक्त इसकी नियमित पूजा अर्चना नहीं कर पाते. मंदिर के कपाट केवल 12 घंटे के लिए खोले जाते हैं. बंशी नारायण मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित प्राचीन और रहस्यमय मंदिर है.
मंदिर 364 दिन बंद रहता है
रक्षाबंधन के दिन बंशी नारायण मंदिर खुलते ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है, जो यहां पूजा अर्चना करते हैं और भगवान बंशी नारायण का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इस दिन, जब तक सूर्य की रोशनी रहती है, मंदिर खुला रहता है. सूर्यास्त होते ही मंदिर के कपाट फिर से बंद कर दिए जाते हैं. सुबह से ही दूर-दराज से श्रद्धालु मंदिर के दर्शन के लिए मंदिर पहुंचने लगते हैं.
मंदिर से जुड़ी कथा
बंशी नारायण मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, कथा के अनुसार, भगवान विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्त होने के बाद सबसे पहले यहीं प्रकट हुए थे. माना जाता है कि इसी स्थान पर देव ऋषि नारद जी ने भगवान नारायण की पूजा-अर्चना की थी. तभी से ये मान्यता है कि नारद जी साल के 364 दिन यहां भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और एक दिन के लिए इस कारण चले जाते हैं, ताकि भक्तजन भी यहां भगवान नारायण की पूजा कर सकें. इसी वजह से इस मंदिर के कपाट साल में केवल एक बार, रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं.
एक कथा ये भी है…
रक्षाबंधन के दिन मंदिर खुलने की कथा राजा बलि और भगवान विष्णु से जुड़ी हुई है. कथा के अनुसार राजा बलि ने भगवान विष्णु से उनका द्वारपाल बनने का आग्रह किया था, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया और वे राजा बलि के साथ पाताल चले गए. कई दिनों तक जब माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को कहीं नहीं पाया, तो उन्होंने नारद जी के सुझाव पर श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त करने का आग्रह किया. इसके बाद, राजा बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ इसी स्थान पर मिलवाया था. माना जाता है कि बाद में इस जगह पर पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया. रक्षाबंधन के दिन यहां आने वाली महिलाएं भगवान बंशी नारायण को राखी बांधती हैं. इस मंदिर के आसपास दुर्लभ प्रजाति के फूल और पेड़ भी देखने को मिलते हैं.