रायपुर. राजधानी में हाथी के दस्तक देने के बाद से ही हड़कम्प मचा हुआ है. इन हाथियों को देखने लोगो का हुजुम जमा हो रहा है. ज्यादा संख्या में लोगों को अपने पास देख हाथी अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे है और यही कारण है कि कई बाद ये हाथी आक्रोशित हो जाते है. जिसका खामियाजा जानो माल गवांकर उठाना पड़ता है. और बाद में लोग उल्टा बेजुबान हाथी को दोष देते है. जबकि ऐसी घटनाओं में हाथियों को काई दोष ही नहीं होता है. ऐसा ही कहना है जंगली जीवों के जानकर और विशेषज्ञों का.

ऐसी ही घटना शनिवार को रायपुर में भी देखने को मिली. जब लगभग दो दर्जन हाथियों का एक झुंड़ बारनवापारा अभ्यारण के महानदी को पार कर रायपुर की तरफ आ गए. जिसे देखने लोगों का हुजुम जमा हो गया. जिसके बाद हाथियों द्वारा दौड़ाए जाने के कारण कुछ लोगों को चोट लगने की बात सामने आ रही है. हालांकि की इस घटना में जानो माल की हानि नहीं हुई. इस भागदौड़ के बीच कुछ हाथी झुंड से बिछड़कर आस पास के गांवो में चले गये है. इससे इन गांवो के लो भयभीत है.

इस पूरी घटना पर प्रकाश डालते हुए पर्यावरण कार्यकर्ता नितिन सिंघवी ने हा​थियों के स्वभाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी साथ ही उन्होंने लोगों को भी हाथी देखने के बाद उत्साह से नहीं सहजता के साथ रहने को कहा है. जिससे इन परिस्थितियों में हाथियों के आक्रमण से बचा जा सके.

बारनवापारा अभ्यारण के रहवासी हाथी शनिवार को महानदी पार कर रायपुर जिले की तरफ आ गए थे. इससे रायपुर वासियों और आसपास के ग्रामवासी उन्हें देखने के लिए अति उत्साहित हो गए थे जिसके बाद हाथियों द्वारा दौड़ाए जाने के कारण कुछ लोगों को चोट लगने की बात सामने आ रही है.

इस घटना के बाद पर्यावरण कार्यकर्ता नितिन सिंघवी ने यह समझाने का प्रयास किया कि पेड़ों और झाड़ियों के पीछे हाथी अपने को छुपाने में सक्षम रहते है. जिससे आप उन्हें नहीं देख सके. हाथी मनुष्य से सम्मानजनक दूरी पर रहना चाहते है. अचानक मनुष्य को सामने पाने पर वह आक्रमक हो सकते हैं. विशेष रुप से जब उनके साथ बच्चे हो. अपनी मां के साथ हाथी का बच्चा एक डेडलिएस्ट कंबीनेशन होता है. अतः हाथियों को देखने की उत्सुकता ना रखें और फोटो खींचने गलती से भी पास ना जावे. इलेक्ट्रॉनिक सामान की आवाजों विशेष रूप से मोबाइल की घंटी से हाथी विचलित हो सकते हैं. ऐसे में हाथियों के पास जाना एक आत्मघाती कदम होता है.

आम जन द्वारा हाथियों को देखने के लिए मेला लगाने पर अगर कोई जनहानि होती है. तो हम वन विभाग और प्रशासन को दोषी नहीं ठहरा सकेंगे. छत्तीसगढ़ में बहुत बड़े प्रतिशत में हाथियों से जनहानि तब हुई है जब उसे देखने लोग गए थे.

नितिन सिंघवी ने बताया कि बारनवापारा के यह जो हाथी आए हैं इन्हें हम हाथियों का दल कहते हैं परंतु वास्तविकता में यह हाथियों का एक परिवार है अतः दल कहना उचित नहीं है. परिवार कहना चालू करें तो आप पाएंगे कि हम इन्हें ज्यादा समझ पाएंगे. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन्हें हाथियों का परिवार ही कहा जाता है. हम इन्हें जंगली हाथी कहते हैं. जंगली शब्द हम व्यवहार प्रदर्शित करने के लिए करते हैं. परंतु यह जंगली नहीं है. यह अत्यंत इंटेलिजेंट होते हैं और इसीलिए इन्हें मैजेस्टिक( आलीशान) और आइकोनिक( प्रतिष्ठित) प्राणी कहा जाता है. इन्हें वन हाथी कहना चालू करिए तो आप इन्हें ज्यादा अच्छे से समझ सकेंगे. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन्हें फारेस्ट एलीफैंट ही कहा जाता है. जिस प्रकार आप अपने परिवार की रक्षा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं वैसे यह हाथी भी अपने परिवार की रक्षा करने के लिए तत्पर रहते हैं आपके पास जाने से इन्हें भय पूर्ण शंका हो सकती है.

सिंघवी के अनुसार छत्तीसगढ़ में हाथियों के परिवार विशेष रुप से धान की फसल के समय जंगल से बाहर आते हैं. वे विभिन्न फसलों की न्यूट्रीशन वैल्यू कार्बोहाइड्रेट मिनरल विटामिन इत्यादि से प्रभावित होकर उन्हें खाते हैं. हमें यह स्वीकार ना पड़ेगा कि हाथियों का यह परिवार हमारे पड़ोस के बारनवापारा अभ्यारण में शांतिपूर्वक रह रहा है तथा वहां से यह समय समय पर बार-बार बाहर निकलता रहेगा. हाथियों का यह परिवार अत्यंत शांत है. हाथियों का कोई भी परिवार उत्पाती नहीं होता है अतः इन के लिए उत्पाती शब्द का उपयोग भी अनुचित है. हमारा कर्तव्य और दायित्व है कि हम इनकी शांति भंग ना होने दें और इन से दूर रहे. जिन ग्रामीण भाइयों की फसल इत्यादि का नुकसान होता है उनके नुकसान की वन विभाग तत्परता से भरपाई करता है.