जोधपुर। राजस्थान के जोधपुर फैमिली कोर्ट ने बच्चों की अभिरक्षा से जुड़े मामलों में एक अहम फैसला सुनाया है. न्यायाधीश वरुण तलवार ने स्पष्ट किया कि किसी भी अंतरिम आदेश के पहले नाबालिग बच्चों की इच्छा जानना अनिवार्य है. यदि बच्चा समझ रखने की उम्र में है, तो उसकी भावनाओं और इच्छाओं की अनदेखी नहीं की जा सकती. यह फैसला ऑस्ट्रेलियाई दंपती निजी भंडारी और रुचि जैन के तलाक से जुड़े मामले में आया है, जहां पिता ने अपनी 13 साल की बेटी और 6 साल के बेटे की अभिरक्षा के लिए याचिका दायर की थीं.

कोर्ट में मां की ओर से पेश अधिवक्ता ने तर्क दिया कि बच्चों की बुद्धिमत्ता और समझ को ध्यान में रखते हुए अदालत को अंतरिम अभिरक्षा के आदेश जारी करने से पूर्व उनकी इच्छा अवश्य जान लेनी चाहिए. इस तर्क को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि 13 वर्षीय पुत्री इतनी समझदार है कि वह अपनी भलाई-बुराई का सही निर्णय ले सकती है. कोर्ट ने 6 साल के बेटे की इच्छा को भी महत्व दिया, लेकिन विशेष रूप से बड़ी बच्ची की परिपक्वता पर जोर दिया.
फैसले में राजस्थान उच्च न्यायालय के 2015 के ऐतिहासिक मामले ‘अनुराग वशिष्ठ बनाम कुसुम’ का हवाला देते हुए जज तलवार ने कहा, “बाल कल्याण सर्वोपरि है. बच्चों की अभिरुचि और भावनाओं को समझे बिना कोई न्यायिक आदेश देना उचित नहीं होगा.” कोर्ट ने निर्देश दिया कि वह स्वयं बच्चों से व्यक्तिगत रूप से बातचीत करेगा, ताकि उनकी वास्तविक इच्छा का पता चल सके. यह कदम बच्चों के अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक सकारात्मक पहल माना जा रहा है.
परिवारिक विवादों के विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला अन्य अदालतों के लिए नजीर बनेगा. वर्तमान में, मामला विचाराधीन है और अगली सुनवाई में बच्चों की बात सुनने के बाद ही अभिरक्षा पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा. इस फैसले से माता-पिता के बीच खींचतान में फंसे बच्चों को न्यायिक प्रक्रिया में अधिक आवाज मिलने की उम्मीद जगी है.
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