पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा प्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है कि, पिछले एक दशक में भारत में पेट्रोल की खपत दोगुनी से अधिक हो गई है. आंकड़ों में बताया गया है कि 2013-14 और 2023-24 के बीच, देश की वार्षिक पेट्रोल खपत 117 प्रतिशत बढ़ गई है, जो ऐसे समय में हुआ है जब पर्यावरण प्रदूषण और वाहनों के उत्सर्जन के प्रभाव को लेकर चिंता तेजी से बढ़ रही है.
कोविड-19 के बाद बढ़ी यात्री वाहनों की मांग
पिछले एक दशक में जलवायु संकट काफी तेजी से बढ़ा है. बीते दशक में कार्बन को कम करने के लिए कई क्षेत्रों में कार्य हुआ है. यात्री वाहनों में पेट्रोल की खपत का स्तर काफी बढ़ा है. कोविड-19 के बाद से यात्री वाहनों की बिक्री में तेजी देखी गई है. कोविड-19 के बाद लोगों ने यात्री वाहनों की ओर अपना रुझान बढ़ाया और साथ-साथ पेट्रोल की मांग में भी बढ़त दर्ज की गई.
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2013-14 और 2023-24 के बीच पेट्रोल की वार्षिक खपत 117%, डीजल की 31%, विमानन टरबाइन ईंधन की 50% और एलपीजी की 82% बढ़ी है.
मिट्टी के तेल की खपत में 93 फीसदी की कमी
इस अवधि के दौरान मिट्टी के तेल की खपत में 93% की गिरावट आई है. एक दशक में पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की प्राथमिकता भी बढ़ी है क्योंकि डीरेग्यूलेशन के बाद से डीजल वाहनों को पहले जैसी वरीयता नहीं मिल रही है. डीजल वाहनों की घटती लोकप्रियता के पीछे एक कारण यह भी है कि पेट्रोल वाहनों को कम रखरखाव की आवश्यकता होती है, और अब ये ईवी हाइब्रिड वेरिएंट में उपलब्ध हैं.
पिछले वित्त वर्ष की तुलना में पेट्रोल की बिक्री पिछले वित्त वर्ष में 6.4 प्रतिशत बढ़ी
वित्त वर्ष 2024 में, भारत की ईंधन मांग पिछले वर्ष दर्ज 4.48 एमबीडी से बढ़कर रिकॉर्ड 4.67 एमबीडी पर पहुंच गई. पिछले वित्त वर्ष की तुलना में पेट्रोल की बिक्री पिछले वित्त वर्ष में 6.4 प्रतिशत बढ़ी, जबकि डीजल की बिक्री में 4.4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई.
पेट्रोल की मांग आगे चलकर काफी कम हो सकती है
क्योंकि सीएनजी, सीबीजी, इथेनॉल और ईवी जैसे पेट्रोल के विकल्प मिश्रण में भूमिका निभाना शुरू कर रहे हैं, खासकर दोपहिया और तिपहिया व्हीकल सेगमेंट में जबकि डीजल के विकल्प उस तरह से बाजार में मौजूद नहीं है.