थोड़ी हटकर हूं दिखने में, लेकिन इंसान हूं. मैं सुंदर नहीं जिस्म से, लेकिन रूह से इंसान हूं.

सत्यपाल सिंह,रायपुर। किन्नरों की जिंदगी के बारे जानने और समझने के लिए अब आपको इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं है. क्योंकि उनकी जिंदगी को किताब की शक्ल में उकेर दिया गया है. उनकी दास्तानं आपको किबातों में भी पढ़ने को मिलेंगी. दरअसल छत्तीसगढ़ में किन्नरों ने ‘जिंदगी की दास्तान’ नाम की पहली किताब लिखी है. थर्ड जेंडर समुदाय सदस्यों की गद्य और पद्य रचनाओं का यह पहला संकलन है. इसकी रचना छत्तीसगढ़ समेत पूरे भारत के तृतीय लिंग समुदाय ने किया है.

किन्नर विद्या राजपूत ने बताया कि अगर आप परआत्म-अभिव्यक्ति संवेदनाएं, पीड़ाए, आशाएं, आकांक्षाएं, अनगिनत संभावनाएं और ना जाने कितने ही ऐसे सहज और जटिल भावों से पाठक रूबरू होंगे. उन्हें पढ़कर चेतन और अचेतन मन में कहीं ना कहीं यहां भाव हिलोरे लेने लगेंगे कि थर्ड भाव शून्य नहीं है. विचार शून्य नहीं, नकारा नहीं, उनमें अदम्य साहस है. बचपन से लेकर आज तक कटीले रास्तों पर चलते हैं, उफ भी नहीं करते है.

उनका कहना है कि हम बहुत कुछ कहना और करना भी चाहते हैं, लेकिन जब देखते हैं कि वैचारिक यात्रा के लिए गली से लेकर सड़क तक सब बंद है, तो मन मसोस कर रह जाते है. हमारे समुदाय की यह रचनाएं समाज के समक्ष उनके अंतर को उद्घाटित करेंगी और छोटा ही सही एक सहृदयता का भाव पुष्पित करेगी. यह किताब आपको विकास प्रकाशन से प्राप्त हो सकती है. इन रचनाओं को किताब के रूप में आप तक पहुंचाने के लिए डॉक्टर फिरोज अहमद ने अपना अमूल्य योगदान दिया है.