चंद्रकांत देवांगन दुर्ग। जिला उपभोक्ता फोरम में प्रार्थी द्वारा भ्रमित कर गलत बीमा पालिसी जारी करने पर बीमा कंपनी के खिलाफ वाद दायर किया था. सुनवाई के बाद फोरम ने 72 हजार रुपए हर्जाना देने का निर्देश दिया है.एजेंट द्वारा पॉलिसी जारी करते समय बताए गए लुभावने वादों से हटकर अलग योजना वाली पॉलिसी में प्रीमियम राशि जमा करने पर जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने फ्यूचर जनरली इंडिया लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड पर रु.72 हजार हर्जाना लगाया है.
क्या है मामला
बीमा कंपनी के एजेंट ने सेक्टर 2 भिलाई निवासी चंद्रा पचौरी के बीएसपी से रिटायर्ड पिता को रिटायरमेंट पर मिली राशि बीमा कंपनी में जमा करने के लिए प्रेरित करते हुए यह बताया कि हमारी कंपनी रकम जमा करने का कार्य करती है और जमा रकम पर अच्छा ब्याज देती है जो कि 3 वर्ष बाद ग्रोथ होकर राशि मिलती है साथ में रिस्क कवर जोखिम हेतु दुर्घटना बीमा भी मिलता है ये सिंगल प्रीमियम रु. 66000 वाली पॉलिसी है परंतु पॉलिसी बांड मिलने पर जानकारी मिली कि पॉलिसी सिंगल प्रीमियम वाली एफ.डी. योजना की नहीं है बल्कि 10 वर्ष लगातार प्रीमियम अदा करने वाली आर.डी. पॉलिसी है, जिसमें परिवादी को हर साल रु. 66000 जमा करना पड़ेगा। सीमित आय वाला परिवार होने के कारण परिवादिनी और उसके पिता गलत योजना के तहत जारी बीमा पॉलिसी को बंद करवाने हेतु जब बीमा कंपनी के ऑफिस पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि पॉलिसी बंद नहीं हो सकती. प्रकरण में बीमा कंपनी की ओर से कोई जवाब पेश नहीं किया गया
फोरम का फैसला
जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने यह पाया कि परिवादिनी को जारी की गई पॉलिसी वन टाइम प्रीमियम वाली नहीं होकर वार्षिक प्रीमियम वाली पॉलिसी थी। बीमा कंपनी ने परिवादिनी एवं उसके परिवार की आर्थिक सामर्थ्य की पुष्टि किए बगैर ही रु. 66000 वार्षिक प्रीमियम की लंबी अवधि वाली पॉलिसी जारी कर दी जबकि उसे यह देखना चाहिए था कि पॉलिसीधारक प्रतिवर्ष इतनी बड़ी रकम प्रीमियम के रूप में अदा करने में सक्षम और समर्थ है की नहीं। बीमा कंपनी की यह भी जिम्मेदारी बनती है कि पॉलिसी जारी करने से पहले ग्राहक को भलीभांति समझाएं कि वह प्रतिवर्ष जमा करने वाली योजना के लिए पॉलिसी ले रहा है। बीमा कंपनी अपना व्यापार बढ़ाने के लिए एजेंट तो रख लेती है परंतु उस एजेंट द्वारा ग्राहकों को सही जानकारी दी जा रही है कि नहीं इस संबंध में कोई निगरानी एवं नियंत्रण नहीं रखती है। बीमा कंपनी ने परिवादिनी को भ्रम में डालकर बिना वस्तुस्थिति समझाएं दिग्भ्रमित कर पॉलिसी जारी की है, जो कि व्यवसायिक कदाचरण और सेवा में निम्नता की श्रेणी में आता है।
जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने कंपनी पर रु. 72000 हर्जाना लगाया, जिसमें प्राप्त की गई प्रीमियम राशि रु. 66000, मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में रु. 5000 तथा वाद व्यय रु. 1000 अदा करने का आदेश दिया, उक्त राशि पर 7.50% वार्षिक दर से ब्याज भी देना होगा.