केंद्र सरकार ने सितंबर के आख़िर में करोड़ों यात्रियों को राहत की उम्मीद दी थी. 22 सितंबर 2025 से लागू किए गए नए GST नियमों के तहत कई वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स दरों में बड़ा बदलाव हुआ. सरकार ने 12% और 28% वाले स्लैब को खत्म कर केवल 5% और 18% के टैक्स स्लैब को बरकरार रखा. इन बदलावों के चलते रोजमर्रा के सामान सस्ते हुए, और उम्मीद थी कि होटल रूम बुकिंग पर भी जेब का बोझ हल्का होगा.

लेकिन, हकीकत इससे अलग निकली — GST तो घटा, मगर होटल के कमरे सस्ते नहीं हुए. कई यात्रियों ने सोशल मीडिया पर शिकायत की कि “18% से 5% GST होने के बाद भी होटल रेट्स जस के तस हैं.” तो सवाल है GST में इतनी बड़ी कटौती के बावजूद होटल बिल में राहत क्यों नहीं दिख रही?

सरकार का फैसला: होटल पर 18% से घटाकर 5% GST

नई व्यवस्था के तहत, होटल के कमरे बुक करने पर लगने वाला GST अब 18% से घटाकर 5% कर दिया गया है. पहले, अगर ₹5,000 के कमरे पर 18% GST लगता था, तो ग्राहक को ₹900 अतिरिक्त देना पड़ता था. अब यही कमरा 5% GST दर पर सिर्फ ₹250 टैक्स में मिलना चाहिए. कागज़ पर यह बदलाव “किफायती” दिखता है, लेकिन जमीनी असर शून्य नजर आ रहा है. क्योंकि सरकार ने टैक्स दर तो घटाई, मगर साथ में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का लाभ हटा दिया और यहीं पूरी कहानी बदल गई.

ITC के हटने से बढ़ा होटल खर्च

होटल मालिकों और ट्रैवल एजेंसियों को पहले इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का फायदा मिलता था. इस व्यवस्था में, वे अपने संचालन खर्च — जैसे बिजली बिल, फर्नीचर, सर्विस चार्ज, सफाई, किराया आदि — पर दिए गए GST को एडजस्ट कर लेते थे. इससे उनकी टैक्स देनदारी कम होती थी और ग्राहक को कुछ हद तक सस्ता रेट मिलता था.

अब, GST घटाने के साथ-साथ सरकार ने यह ITC सुविधा पूरी तरह समाप्त कर दी है. नतीजा – होटल मालिकों को अब हर खर्च पर लगने वाला टैक्स खुद वहन करना पड़ रहा है. वे इन खर्चों को ग्राहकों से रिकवर कर रहे हैं, इसलिए अंतिम बिल में राहत नहीं दिख रही.

क्या है इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC)?

इनपुट टैक्स क्रेडिट GST प्रणाली का एक अहम स्तंभ है. यह पंजीकृत व्यापारियों को उनकी खरीद पर चुकाए गए टैक्स की भरपाई में मदद करता है. उदाहरण के लिए, यदि कोई होटल 18% GST के साथ फर्नीचर खरीदता है, तो पहले वह यह टैक्स अपनी सेल टैक्स देनदारी से घटा सकता था. अब, ITC के हटने से यह विकल्प समाप्त हो गया है – यानी जो टैक्स दिया गया, वह खर्च के रूप में दर्ज होकर कीमत में जुड़ गया.

होटल इंडस्ट्री की दलील

होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कई प्रतिनिधियों ने साफ कहा है कि “सरकार ने दरें घटाईं जरूर हैं, लेकिन ITC का हटना हमारे लिए घाटे का सौदा है. ग्राहक को सस्ता रूम देने के बावजूद हमें ऑपरेटिंग कॉस्ट बढ़ने से नुकसान हो रहा है.” उनके मुताबिक, होटल उद्योग पहले से ही बिजली, लाइसेंस शुल्क, श्रमिक वेतन और रखरखाव खर्च में बढ़ोतरी झेल रहा है. ऐसे में ITC का हटना “छूट नहीं, बोझ” साबित हुआ है.

यात्रियों पर क्या असर?

फिलहाल, देश के अधिकतर प्रमुख शहरों – दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और गोवा – में होटल बुकिंग दरें पहले जैसी या उससे भी अधिक बनी हुई हैं. ऑनलाइन ट्रैवल पोर्टल्स पर GST स्लैब का बदलाव तो दिखता है, लेकिन अंतिम बिल में यह फर्क गायब हो जाता है क्योंकि बेस प्राइस बढ़ा दी गई है. इसका सीधा असर ट्रैवलर्स की जेब पर पड़ा है – जहां उन्हें उम्मीद थी कि ₹5,000 का कमरा अब ₹4,500 में मिलेगा, वह अब भी ₹5,200 या उससे अधिक में बुक हो रहा है.

क्या सरकार को दोबारा सोचना चाहिए?

वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि GST कटौती का उद्देश्य उपभोक्ता लाभ था, लेकिन ITC हटाने से यह लाभ न के बराबर रह गया. अगर सरकार चाहती है कि टैक्स सुधार का फायदा ग्राहकों तक पहुंचे,तो उसे या तो ITC वापस देना होगा या होटल सेक्टर के लिए वैकल्पिक टैक्स राहत व्यवस्था बनानी होगी.

राहत का वादा, उलझन का असर

कागज़ों पर होटल रूम सस्ते हैं, पर असलियत में GST सुधार सिर्फ आंकड़ों का खेल बन गया है. ग्राहक को रियायत नहीं मिली, होटल मालिकों पर खर्च बढ़ गया, और सरकार के सुधारों का असर अब भी बहस का विषय बना हुआ है. अब यह देखना बाकी है कि आने वाले महीनों में केंद्र सरकार इस असमानता को सुधारने के लिए क्या कदम उठाती है – क्योंकि फिलहाल, होटल रूम के बिल में “टैक्स घटा नहीं, ट्रिक बढ़ गई” नजर आ रही है.