पहलगाम हमले के बाद देश में इस वक्त राष्ट्रीय राष्ट्रिय को ध्यान में रखते हुए सरकार की तरफ से ऑपरेशन पुशबैक (Operation Pushback) चलाया जा रहा है। जिसके तहत देश के अंदर छुपकर अवैध तरीके से रह रहे बांग्लादेशियो और रोहिंग्या मुसलमानों को चुनचुनकर उनके देश वापस भेजा जा रहा है. इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार (31 जुलाई, 2025) को देश में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन, हिरासत में लिए जाने और उनके रहने की स्थिति को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई हुई. इस दौरान कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों से जुड़े चार अहम सवाल पूछे, जिन पर कोर्ट सितंबर में होने वाली विस्तृत सुनवाई में विचार करेगा.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. कोर्ट में 22 याचिकाएं दाखिल की गईं, जिनमें से कुछ असम में विदेशी घोषित लोगों को लंबे समय तक हिरासत में रखे जाने के मामले से भी जुड़ी थीं. सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि इन सभी 22 मामलों में समानता ये है कि ये फॉरनर्स एक्ट से जुड़े हैं. हालांकि, जस्टिस दत्ता ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों के मामले को अलग रखना चाहिए और पहले उस पर सुनवाई की जाए.

जस्टिस दत्ता की इस बात पर सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि राजूबाला केस को भी रोहिंग्या मामले की तरह ही देखना चाहिए क्योंकि उनके पति को असम में लंबे समय से 30 रोहिंग्याओं के साथ हिरासत में रखा गया है. एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि मुद्दा ये है कि क्या ऐसे हालात में जब दूसरे देश इन लोगों को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं तो रोहिंग्याओं को वापस भेजा जाना चाहिए. एक और वकील ने यह भी कहा कि सरकार शरणार्थी और अवैध प्रवासियों में अतंर नहीं समझ पा रही है.

कोर्ट ने सभी दलीलें सुनने के बाद रोहिंग्याओं से जुड़े चार सवाल पूछे और कहा कि सितंबर में इन सवालों पर विस्तृत सुनवाई की जाएगी. वो चार सवाल ये हैं-