वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर. रायपुर के अंबेडकर अस्पताल (मेकाहारा) में एचआईवी पीड़िता की पहचान उजागर करने के मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने राज्य सरकार को दोषियों पर कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। साथ ही पीड़िता को 2 लाख रुपए मुआवजा देने के निर्देश भी दिए हैं।
रायपुर के डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में एचआईवी पॉजिटिव महिला की पहचान सार्वजनिक करने की घटना पर हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत शपथपत्र प्रस्तुत करने कहा था। अदालत ने कहा कि यह कृत्य न केवल अमानवीय बल्कि नैतिकता और निजता के अधिकार का घोर उल्लंघन है।

बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता यशवंत सिंह ने बताया कि एचआईवी पीड़ितों की पहचान उजागर न करने का नियम पहले से है। चिकित्सा व अन्य संस्थानों को इस नियम का कड़ाई से पालन के निर्देश हैं। इसके बाद भी अस्पताल कर्मियों की लापरवाही से पहचान उजागर हुई। मामले में एफआईआर हुई है, विभागीय जांच की जा रही है। कोर्ट ने पीड़िता को 2 लाख रुपए मुआवजा देने और जांच के बाद दोषियों पर कार्रवाई कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश देते हुए याचिका निराकृत कर दी।
अस्पताल में नवजात शिशु के पास लगाया गया था पोस्टर
बता दें कि रायपुर के डाॅ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में नवजात शिशु के पास एक पोस्टर लगाया गया, जिसमें यह लिखा था कि बच्चे की मां एचआईवी पाजिटिव है। रिपोर्ट के मुताबिक, यह पोस्टर गाइनो वार्ड में भर्ती मां और नर्सरी वार्ड में रखे नवजात बच्चे के बीच लगाया गया था। जब बच्चे का पिता अपने शिशु को देखने पहुंचा तो उसने यह पोस्टर देखा और भावुक होकर रो पड़ा। इस मामले में हाईकोर्ट ने संज्ञान लेकर कहा था कि यह अत्यंत अमानवीय, असंवेदनशील और निंदनीय आचरण है, जिसने न केवल मां और बच्चे की पहचान उजागर कर दी। यह सामाजिक कलंक और भविष्य में भेदभाव का शिकार भी बना सकता है। कोर्ट ने कहा कि यह कार्य सीधे तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है।