वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर. हाईकोर्ट ने एक बार फिर सरकारी विभागों की सुस्त कार्यप्रणाली और लालफीताशाही पर सख्त टिप्पणी की है। महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से सेवानिवृत्त महिला कर्मचारी के खिलाफ की गई अपील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि सरकारी विभागों में ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ काम करने की जरूरत है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि विभागों में फाइलें महीनों और वर्षों तक लंबित रहती है, जो प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम है।
दरअसल विभाग ने हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश के 107 दिन बाद अपील दायर की थी। इस देरी को लेकर विभाग ने फाइल प्रक्रिया, आदेश जारी होने में विलंब और अन्य औपचारिकताओं का हवाला दिया। राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि सरकार एक विशाल संगठन है, जहां विभिन्न विभागीय औपचारिकताओं के चलते देरी होना स्वाभाविक है। इस पर नाराज बेंच ने स्पष्ट किया कि देरी के लिए साधारण स्पष्टीकरण अब स्वीकार नहीं किया जाएगा।

कोर्ट ने कहा कि सभी सरकारी निकायों और संस्थाओं को यह समझना होगा कि उनके कर्तव्यों का पालन पूरी लगन और प्रतिबद्धता से किया जाना चाहिए। देरी की माफी कोई अधिकार नहीं, बल्कि अपवाद है और इसका उपयोग सरकारी विभागों को ढाल के रूप में नहीं किया जा सकता। कानून सभी के लिए समान है और इसे कुछ लोगों के लाभ के लिए नहीं तोड़ा-मरोड़ा जा सकता। कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद एक बार फिर सरकारी विभागों की कार्यसंस्कृति पर सवाल खड़े हो गए हैं।
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