चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एस.जी.पी.सी.) SGPC के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को राहत देते हुए स्पष्ट कर दिया है कि बिना विधिसम्मत विभागीय कार्रवाई के उनके रिटायरमेंट लाभ रोके नहीं जा सकते।

अदालत ने SGPC की इस दलील को खारिज कर दिया कि उसके कर्मचारियों से जुड़े सेवा विवादों पर संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ की एकल पीठ ने कई याचिकाओं पर एक साथ फैसला सुनाते हुए कहा कि एसजीपीसी एक वैधानिक संस्था है और उसके द्वारा बनाए गए सेवा नियम भी वैधानिक स्वरूप रखते हैं। ऐसे में इन नियमों के उल्लंघन की स्थिति में हाईकोर्ट को क्षेत्राधिकार के प्रयोग से रोका नहीं जा सकता।

अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वे एसजीपीसी में दशकों तक सेवा देने के बाद सेवानिवृत्त हुए, लेकिन उन पर कथित अनियमितताओं के आरोप लगाकर उनकी ग्रैच्युटी, लीव एनकैशमैंट और प्रोविडेंट फंड जैसी वैधानिक देनदारियां रोक ली गईं।

कर्मचारियों ने दलील दी कि न तो उन्हें कभी चार्जशीट दी गई और न ही सेवा नियमों के अनुसार कोई नियमित विभागीय जांच करवाई गई। इसके बावजूद उनके जीवनभर की कमाई को रोके रखा गया, जिससे उन्हें गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

एसजीपीसी की ओर से अदालत में तर्क दिया गया कि भले ही SGPC एक वैधानिक निकाय हो, लेकिन उसके सेवा नियम किसी विधायी अधिनियम से सीधे तौर पर नहीं बने हैं, इसलिए कर्मचारी-नियोक्ता का संबंध निजी प्रकृति का है और इस पर याचिका नहीं बनती। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को स्वीकार करने से इंकार कर दिया।