नई दिल्ली . दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य की है और निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को भागीदारी की अनुमति आवश्यक रूप से दी गई है, क्योंकि राज्य अपना कर्तव्य निर्वहन उचित तरीके से करने में अक्षम है.

अदालत ने कहा कि चूंकि स्कूल सार्वजनिक कार्य करते हैं, इसलिए राज्य का नियमन नियंत्रण आवश्यक है, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि वे दिल्ली स्कूली शिक्षा अधिनियम (डीएसईए) के मापदंडों के तहत ही काम करें और व्यवसायीकरण या मुनाफाखोरी में संलिप्त न हों.

न्यायमूर्ति संजीव नरुला की पीठ ने फैसले में कहा कि ‘‘शिक्षा मुहैया कराना राज्य की प्राथमिक बाध्यता है और यह उसकी जिम्मेदारी है कि प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा सुलभ हो. निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को भागीदारी की अनुमति केवल जरूरत की वजह से दी गई, क्योंकि राज्य अपने कार्य को पर्याप्त तौर पर करने में अक्षम है.’’