वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर। 5 साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न के दोषी पाए गए व्यक्ति की दोष सिद्धि और 20 साल की सजा को हाईकोर्ट ने बरकरार रखा है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने पीड़िता के मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को लेकर कहा कि बलात्कार केवल शारीरिक हमला नहीं है, यह अक्सर पीड़िता के पूरे व्यक्तित्व को नष्ट कर देता है। एक हत्यारा अपने शिकार के भौतिक शरीर को नष्ट करता है पर एक बलात्कारी असहाय महिला की आत्मा को अपमानित करता है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में अपराध की गंभीरता और पीड़िता को हुए मानसिक नुकसान पर जोर दिया।
दरअसल 22 नवंबर 2018 को नाबालिग पीड़िता रायपुर में एक स्थानीय दुकान पर चॉकलेट खरीदने गई थी। दुकान के मालिक ने उसे मिठाई देने के बहाने अपने घर में बुलाया और फिर उसका यौन उत्पीड़न किया। पीड़िता की मां ने देखा कि बच्ची बहुत देर बाद घर लौटी और बहुत परेशान थी। पूछताछ करने पर बच्ची ने घटना की जानकारी दी। मां ने तुरंत टिकरापारा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने दुकान मालिक को गिरफ्तार कर लिया। जांच में चिकित्सा परीक्षा, फोरेंसिक विश्लेषण और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान शामिल थे।
मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376एबी और 376(2)(एन) के तहत मुकदमा चलाया गया, जो क्रमशः 12 साल से कम उम्र की नाबालिग के साथ बलात्कार और बलात्कार के बार-बार होने वाले कृत्यों से संबंधित हैं। मामले की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि परिवारों के बीच पहले से मौजूद विवाद के कारण आरोप गढ़े गए। हालांकि, अदालत ने इन दलीलों को खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता की गवाही, मेडिकल रिपोर्ट और फोरेंसिक निष्कर्षों सहित प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया था। हाईकोर्ट ने मामले की समीक्षा करने के बाद निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और धारा 376एबी के तहत 20 साल के कठोर कारावास और धारा 376(2)(एन) के तहत अतिरिक्त 10 साल की सजा की पुष्टि की, जिसे एक साथ पूरा किया जाना था।
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