धार्मिक विशेषज्ञों का कहना है कि दिवाली के दिन कुल दो प्रमुख काल बनते हैं — प्रदोष काल और महानिशीथ काल. जहां प्रदोष काल सामान्य भक्तों के लिए उपयुक्त पूजा-समय है, वहीं महानिशीथ काल तांत्रिक और साधक उपासकों के लिए विशिष्ट समय है. दिवाली सिर्फ रोशनी और लक्ष्मी पूजा का पर्व नहीं, बल्कि यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा का ऐसा क्षण भी है जब धरती पर दिव्य शक्तियों का संचार चरम पर होता है. सामान्य भक्त और गृहस्थों को प्रदोष काल में विधि-विधान से लक्ष्मी पूजन करना चाहिए, जबकि साधक और तांत्रिक महानिशीथ काल में विशेष साधना करते हैं.

प्रदोष काल
बता दें कि 20 अक्टूबर की शाम को प्रदोष काल शाम 5:36 बजे से 8:07 बजे तक रहेगा. यह वह अवधि है जिसमें सूर्यास्त के बाद वातावरण अधिक शुभ माना जाता है और सामान्य गृहस्थों द्वारा लक्ष्मी-गणेश आदि की पूजा की जाती है.
महानिशीथ काल
इस वर्ष दिवाली रात महानिशीथ काल 11:45 बजे से 12:39 बजे तक रहेगा. इस दो घंटे की अवधि में अमावस्या तिथि और मध्यरात्रि का समय एक साथ रहने का योग बनता है. इसलिए यह तांत्रिक क्रियाओं और विशेष साधनाओं के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है.
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