हैदराबाद. ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी ने तीन दिन के अपने भारत दौरे की शुरुआत दक्षिण भारतीय शहर हैदराबाद से करते हुए फ़ारस और हैदराबाद के पांच सौ साल से ज्यादा पुराने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्तों की गर्माहट उजागर कर दी. हसन रुहानी गुरुवार शाम को हैदराबाद पहुंचे थे जहां उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ. अपने दौरे के दूसरे दिन यानी शुक्रवार को राष्ट्रपति हसन रुहानी उन सात मशहूर मक़बरों का दौरा कर रहे हैं जहां क़ुतुब शाही सुल्तानों और शाही परिवार के दूसरे सदस्यों की कब्रे हैं.

चार मीनार पर फ़ारसी मोहरें
फ़ारसी वंश के क़ुतुब शाही ने 1518 से लेकर 1687 ईसवी तक दक्कन के गोलकुंडा राजवंश पर शासन किया था. छठे क़ुतुब शाही सुल्तान, मोहम्मद कूली ने ही साल 1591 में हैदराबाद शहर की नींव रखी थी. उस वक़्त महलों, नहरों और बाग़ानों से सजे इस शहर का डिज़ाइन ईरानी इंजीनियर मीर मोमिन ने तैयार किया था. चूना पत्थर से बनी हैदराबाद की प्रतिष्ठित चार मीनार पर भी फ़ारसी मोहरें लगी हैं, जिनका डिज़ाइन ईरानी शहर मशहद और इस्फहान की इमारतों से मिलता जुलता है. क़ुतुब शाही का अंत तब हुआ जब मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने हैदराबाद पर हमला किया और आख़िरी क़ुतुब शाही सुल्तान अब्दुल हसन क़ुतुब शाह को गिरफ़्तार कर लिया.

आज भी हैदराबाद का खाना, पहनावा और पुरानी इमारतों को देखकर ये अहसास होता है कि इस शहर का ईरानी कनेक्शन कितना पुराना है. भारत में सबसे बड़े आंगन वाली मक्का मस्जिद क़ुतुब शाही का एक और ऐतिहासिक चिन्ह मानी जाती है. शुक्रवार को राष्ट्रपति रुहानी यहां नमाज़ अदा करेंगे. हालांकि ये एक सुन्नी मस्जिद है और इसने एक बड़े शिया नेता के लिए पहली बार अपने दरवाज़ों को खोला है. नमाज़ के बाद वो लोगों को संबोधित भी करेंगे. चार मीनार के क़रीब बनी इस मस्जिद की नींव भी सातवें क़ुतुब शाही सुल्तान मोहम्मद क़ुतुब ने 1616-17 में रखी थी. इसका नक़्शा इंजीनियर फ़ैजुल्लाह बेग़ ने तैयार किया था. लेकिन औरंगज़ेब के हमले की वजह से इस मस्जिद का काम बीच में ही रोकना पड़ा था.

मक्का मस्जिद का राजमिस्री हिंदू था
इतिहासकार इस मस्जिद से जुड़ी एक दिलचस्प बात बताते हैं कि मक्का मस्जिद का राजमिस्री एक हिंदू था जिसकी निगरानी में आठ हज़ार मजदूरों ने मिलकर इसे बनाया था. 18 मई 2007 में भी ये मस्जिद ख़बरों में आई थी. एक हिंदू चरमपंथी संगठन ‘अभिनव भारत’ ने इस मस्जिद में विस्फोट किया था. शुक्रवार की नमाज़ के बाद हुए इस धमाके में पांच लोगों की मौत हो गई थी. यह मामला आज भी कोर्ट में लंबित है. ईरान के राष्ट्रपति बनने के बाद साल 2013 में हसन रुहानी पहली बार भारत आए थे. गुरुवार को रुहानी ने शिया और सुन्नी समेत विभिन्न मतों के इस्लामी विद्वानों को भी संबोधित किया.

शिया-सुन्नी के बीच एकता पर ज़ोर
राष्ट्रपति रुहानी ने शिया और सुन्नी समुदाय के बीच एकता की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है. उन्होंने आरोप लगाया कि इराक़ और सीरिया जैसे देशों में पश्चिमी देश उनके बीच जान-बूझकर मतभेद पैदा कर रहे हैं. उन्होंने भारत को विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच ‘शांति और सह-अस्तित्व का उद्गम’ बताते हुए इस देश की सराहना की. रुहानी ने कहा, “भारत अलग-अलग धर्मों और मतों के मानने वालों को शांति से एक साथ रहने का उदाहरण रहा है. यहां ये लोग सदियों से साथ रह रहे हैं. शिया, सुन्नी, सूफ़ी और सिख साथ रहते हुए सदियों से देश और सभ्यता का निर्माण कर रहे हैं.” उन्होंने कहा कि ईरान भारत समेत क्षेत्र के सभी देशों के साथ भाईचारे का रिश्ता बढ़ाना चाहता है.