नए साल में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), आइआइपी (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक) से लेकर खुदरा महंगाई दर का आधार वर्ष बदलने जा रहा है। चालू वित्त वर्ष 2025-26 की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) के जीडीपी का आंकड़ा आगामी 27 फरवरी को जारी होगा, जो नए आधार वर्ष पर आधारित होगा। अभी जीडीपी और आइआइपी के आंकड़ों का बेस ईयर 2011-12 है, जिसे बदलकर 2022-23 किया जा रहा है।
दूसरी तरफ खुदरा महंगाई सूचकांक या दर (सीपीआइ) जिसका आधार वर्ष अभी 2012 है, उसे बदलकर 2024 किया जा रहा है। सीपीआइ को काफी महत्वपूर्ण इसलिए भी माना जाता है, क्योंकि आरबीआइ के रेपो रेट के बदलाव में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। खुदरा महंगाई दर को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी आरबीआइ की है।
नए बेस ईयर से क्या बदलेगा?
फिलहाल देश में महंगाई और GDP के कैलकुलेशन के लिए पुराना बेस ईयर (आधार वर्ष) इस्तेमाल किया जा रहा है। लंबे समय से एक्सपर्ट्स यह मांग कर रहे थे कि आधार वर्ष को अपडेट किया जाए। क्योंकि पिछले एक दशक में लोगों के खर्च करने के तरीके और सामानों की प्राथमिकता बदल गई है। नई सीरीज आने से सरकारी डेटा देश की आर्थिक स्थिति की ज्यादा वास्तविक तस्वीर पेश कर पाएगा।
खाने-पीने की चीजों का वेटेज कम होगा
अभी रिटेल महंगाई के कैलकुलेशन में फूड आइटम्स यानी खाद्य पदार्थों का हिस्सा काफी ज्यादा है। मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, नई सीरीज में खाने-पीने की चीजों के ‘वेटेज’ को कम किया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जैसे-जैसे लोगों की कमाई बढ़ती है, वे खाने के बजाय दूसरी सुविधाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन पर ज्यादा खर्च करने लगते हैं। नई सीरीज में इन आधुनिक जरूरतों को ज्यादा महत्व दिया जाएगा।
IIP डेटा मई से नई सीरीज में आएगा
इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP), जो देश के मैन्युफैक्चरिंग और माइनिंग सेक्टर की रफ्तार बताता है। उसे मई 2026 से नई सीरीज में शिफ्ट किया जाएगा। इसमें उन नए प्रोडक्ट्स को शामिल किया जाएगा, जिनका उत्पादन हाल के वर्षों में शुरू हुआ है। जबकि उन पुराने सामानों को लिस्ट से हटाया जा सकता है, जिनकी अब बाजार में मांग नहीं रही।
क्यों जरूरी था यह बदलाव?
सांख्यिकी मंत्रालय के सचिव सौरभ गर्ग ने पहले भी संकेत दिए थे कि डेटा में सुधार की प्रोसेस चल रही है। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। ऐसे में पुराने मानकों पर डेटा जारी करने से कई बार पॉलिसी बनाने में दिक्कत आती है। नया बेस ईयर आने से रिजर्व बैंक (RBI) को भी ब्याज दरों पर फैसला लेने में आसानी होगी। क्योंकि उनके पास महंगाई का ज्यादा सटीक डेटा होगा।
आम जनता पर क्या असर होगा?
सीधे तौर पर इसका आम आदमी की जेब पर असर नहीं पड़ता, लेकिन सरकार की योजनाएं इसी डेटा पर आधारित होती हैं। अगर महंगाई का डेटा सही होगा, तो सरकार कीमतों को कंट्रोल करने के लिए बेहतर कदम उठा पाएगी। साथ ही GDP के सटीक आंकड़ों से विदेशी निवेशकों का भरोसा भी भारत की अर्थव्यवस्था पर बढ़ता है।
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