तेलंगाना के जयशंकर भूपालपल्ली जिले में अस्पताल के बिल का भुगतान करने में असमर्थ एक व्यक्ति ने एक निजी अस्पताल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. 46 वर्षीय र्मी बापू ने इससे पहले भूपालपल्ली मंडल के महबूबपल्ली गांव में काकतीय थर्मल पावर प्रोजेक्ट (केटीपीपी) के लिए अपनी जमीन अधिग्रहण के दौरान अधिकारियों द्वारा किए गए वादे के अनुसार बेटे को नौकरी नहीं मिलने के बाद कीटनाशक खा लिया था, जिसके बाद उनका अस्पताल में इलाज चल रहा था.

 निराश र्मी बापू ने गुरुवार को अस्पताल के वार्ड में फांसी लगा ली, क्योंकि उनके परिवार के सदस्य इलाज के लिए पैसे लाने गए थे, वो लौट कर नहीं आए. अस्पताल ने बापू के परिवार के सदस्यों से कहा था कि वे 60,000 रुपये के भुगतान के बाद ही उन्हें छुट्टी देंगे. पैसे का इंतजाम नहीं होने पर र्मी बापू ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली.

राजनीतिक दलों के नेताओं ने परिवार पर बिल भुगतान के लिए दबाव बनाने पर अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. उन्होंने परिवार के लिए 25 लाख रुपये मुआवजे की मांग को लेकर केटीपीपी के खिलाफ धरना भी दिया.

बापू के परिवार में पत्नी, एक बेटा और एक बेटी है. उनके बेटे ने कहा कि 2006 में केटीपीपी के लिए उनकी दो एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था. अधिकारियों ने वादा किया था कि वे उनके परिवार के एक सदस्य को नौकरी देंगे. जिले के एक अन्य गांव में मजदूरी का काम कर रहे बापू अपने बेटे को नौकरी दिलाने के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रहे थे. वादा की गई नौकरी न मिलने से बापू मायूस हो गए थे.

वह केटीपीपी गए और 30 और 31 मार्च को वहां रहे और अधिकारियों से अपने बेटे के लिए नौकरी देने भीख मांगी. संबंधित अधिकारियों से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आने पर, उन्होंने 1 अप्रैल को केटीपीपी के मुख्य द्वार के सामने कीटनाशक का सेवन किया. वहां तैनात सुरक्षा गाडरें ने उन्हें भूपालपल्ली के एक निजी अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया.

जब वह ठीक हो गये, तो अस्पताल ने बिल भुगतान के लिए केटीपीपी अधिकारियों से संपर्क किया. उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं होने पर अस्पताल ने बापू के परिवार पर बिल भरने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. अविभाजित आंध्र प्रदेश के अधिकारियों ने 2006 में 750 किसानों से 900 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. सरकार ने बाजार मूल्य के अनुसार मुआवजे का भुगतान करते हुए प्रत्येक प्रभावित परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का वादा किया था.

स्थानीय लोगों का कहना है कि 550 लोगों को रोजगार दिया गया. शेष भूमि निकासी के बच्चे तब या तो नाबालिग थे या पात्र नहीं थे. तब से वे दफ्तरों के चक्कर लगा रहे थे.