रायपुर। सरगुजा जिला और कोरबा के करीब दर्जन भर सरपंचों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है। पत्र में केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए तीन विधेयक जिसमें से दो किसानों से संबंधित है और तीसरा आवश्यक वस्तु संसोधन विधेयक 2020 है। इन विधेयकों को बगैर बहस के ध्वनि मत से पारित करवा लिया गया है। पत्र में उन्होंने तीनों विधेयकों को किसान विरोधी के साथ ही आम उपभोक्ताओं का विरोधी बताया है। उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से ये तीनों विधेयकों को स्वीकृत नहीं किये जाने की मांग की है।

पढ़िये पत्र में क्या लिखा है

केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार बताते हुए किसान विरोधी दो विधेयक “कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020” एवं “कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020” को संसद में प्रस्तुत कर व्यापक चर्चा और वोटिंग के बजाए ध्वनिमत से सदस्यों के विरोध के वाबजूद पारित करवा लिए l तीसरे “आवश्यक वस्तु (संशोधन ) विधेयक 2020” को पूर्व ही संसद के दोनों सदनों में पारित करवा लिया गयाl

ये तीनो विधेयक देश के न सिर्फ किसानों के खिलाफ हैं बल्कि आम उपभोक्ता के उपर भी गंभीर हमला करते हैं l इन विधेयकों का मूल उद्देश खेती किसानी को प्राप्त सरकारी संरक्षण से पीछे हटते हुए उसे कार्पोरेट के अधीन लाना l मंडियों को ख़त्म करते हुए किसानो की उपज को मुनाफाखोर कार्पोरेट के हवाले करना, जिससे वह मनमाफिक तरीके से किसान के खून पसीने से उपजाई फसल को न्यूनतम दाम पर खरीद सकें l बाद में उन्ही अनाजों की जमाखोरी करके उपभोक्ता से अधिकतम दाम वसूल पाए l ये विधेयक किसानो की बदहाली के साथ गरीब, भूमिहीन और मध्यमवर्गीय परिवारों के सामने भुखमरी के हालात पैदा कर देंगे, क्यूंकि देश में अनाजो पर नियंत्रण कार्पोरेट का होगा l

सरकार की ओर से यह बात लगातार कही जा रही हैं यह विधेयक किसानों की भलाई के लिए हैं लेकिन हमारा सवाल हैं, दुनिया में ऐसे कोन से उधारहण हैं जहाँ पर इन सुधारों से किसान आत्मनिर्भर हो चुके हैं ? और यदि ऐसा होता तो अमेरिका में खुले बाजारों के वाबजूद किसानो को हजारों करोड़ की सब्सिडी नही देनी पड़ती l किसान तो आज भी अपनी उपज को कही भी बेचने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन गाँव से 10 किलोमीटर दूर भी उपज ले जाने के लिए लगने वाले किराये के लिए सोचता हे l इस स्थिति में दूसरे शहरों और राज्यों में कैसे बेच पायेगा ? यदि मंडिया ख़त्म कर दी गई तो पूरे देश के किसानो का हाल भी बिहार के किसानो के जैसा होगा l

एक बहुत ही महत्वपूर्ण विधेयक अनुबंधित खेती के लिए हैं जिससे किसानो को अधिक मुनाफा मिलने की बात कही जा रही हैं जबकि अनुबंधित खेती देश के सीधे साधे किसानो को कार्पोरेट का गुलाम बना देगा l इसमें दिए गए प्रावधानों के अनुसार विवाद की स्थिति में किसान न्यायलय में भी नही जा सकता l अनुबंधित खेती से सबसे बड़ी चिंता पर्यावरण की भी हैं l कंपनिया अपने मुनाफे के लिए मन माफिक खेती करवाते हुए अधिक से अधिक रासायनिक खाद और दवाइयों का इस्तेमाल करने से भी पीछे नही हटेंगी जिससे पर्यावरण को भी गंभीर क्षति पहुचेगी l

पारित विधेयकों से आदिवासी किसान सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे जो मौसम के अनुरूप पारंपरिक तथा प्राकृतिक खेती करते हैं और देश में विभिन्न प्रजातियों के बीजों का संरक्षण करते हैं। आज हम जिन उपजों को पैदा करते हैं वो मनुष्य के स्वाथ्य के लिए बेहतर है और उनमें से कुछ उत्पाद तो दवाई की दुकानों में डब्बा बंद मिलते हैं। तात्पर्य यह कि भले ही ये उत्पाद बाजार के हिसाब से लाभकारी नहीं हैं परंतु हमारी सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए लाभकारी है। कारपोरेट जगत मुनाफे के लिए प्रतिबद्ध होता है इसलिए इन विधेयको से हमारे देश से खाद्यान्नों की अनेक प्रजातियां नष्ट हो जाएंगी l वन भूमि और उसके आसपास की खेती को न्यूनतम रासायनिक खाद की जरूरत पड़ती है जबकि मुनाफे की खेती लागत बढ़ने से न सिर्फ किसानों को कर्जदार बनाती है वरन् उन्हें आत्महत्या की ओर ढकेल देती हैं l

अत महामहिम से सादर निवेदन हैं की ये तीनो विधेयक हमारे देश की न सिर्फ खेती किसानी को गंभीर क्षति पहुचाएंगे बल्कि किसानो को बड़ी बड़ी कंपनियों का गुलाम बनने मजबूर कर देंगे l ये हमारे देश की खाद्य संप्रभुता पर भी गंभीर चोट पहुचाएंगे l इसीलिए हसदेव अरण्य क्षेत्र के समस्त आदिवासी, किसान मजदुर और हमारी ग्रामसभाए इन विधेयकों का विरोध करती हैं एवं इन्हें स्वीकृत नही करने का आपसे निवेदन करती हैं l