रायपुर. पुराण में है कि इस संसार में आकर जो सद्गृहस्थ पितृपक्ष के दौरान अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक उनकी दिवंगत तिथि के दिन तर्पण, पिंडदान, तिलांजलि और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं और श्राद्ध करने वाले सदगृहस्थ को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है.

पितृपक्ष में मरण तिथि को श्राद्ध किया जाता है. सप्तमी का श्राद्ध भानुसप्तमी के नाम से किया जाता है. जिसमें श्राद्धकर्म करने से सूर्यग्रहण में किए गए पुण्य के बराबर फल मिलता है और आने वाले वंश को शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलकर स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति का योग बनता है. किसी भी प्रकार से शारीरिक या किसी बीमारी से मृत्यु को प्राप्त पितरों के शारीरिक कष्टों की निवृत्ति और उस प्रकार के शारीरिक कष्ट से आने वाले वंश की रक्षा के लिए भानुसप्तमी का श्राद्ध करने का विधान वेदों में है.

सप्तमी श्राद्ध में सात ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है. सर्वप्रथम नित्यकर्म से निवृत होकर घर की दक्षिण दिशा में सफेद वस्त्र बिछाएं. पितृगण के निमित, तिल के तेल का दीपक जलाएं, चंदन की अगरबत्ती से धूप करें, जल में सफेद तिल मिलाकर तर्पण करें. सफेद फूल चंदन समर्पित करें. इसके उपरांत ब्राहमणों को खीर, पूड़ी, कद्दू की सब्जी, मिष्ठान, फल, लौंग-ईलायची तथा मिश्री अर्पित करें. भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र, धनदक्षिणा देकर उनको विदा करने से पूर्व आशीर्वाद लें.