पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. लापता होने के सालभर बाद जिस पिता का बेटे ने अंतिम संस्कार कर दिया था, आज उसे सही सलामत अपने साथ घर ले गया. मानसिक रोगी पिता 57 वर्षीय अशोक नशकर मामूली विवाद के बाद घर छोड़ दिया था. 510 दिन में 840 किमी सफर तय कर जब देवभोग पहुंचा तो पैर गलने के कगार पर थे. गौरी व शुभम की पहल से उसे मेकाहारा में भर्ती कराया गया, जहां मनोवैज्ञानिक औषविधि सेवा संस्था ने उसे न केवल नई जिंदगी दिलाई बल्कि परिवार से भी मिलाया.

18 जून की रात देवभोग धर्मगढ़ रोड पर ट्राइसाइकिल से आते हुए 56 वर्षीय अशोक नशकर पर नगर के युवक शुभम भटनागर व गौरीशंकर कश्यप की नजर पड़ी. इस वक्त वह सख्श ठीक से बात भी नहीं कर पा रहा था. दाहिने पांव बुरी तरह से चोटिल थे, जिसमें कीड़े बिलबिला रहे थे. बंगाली भाषा में टूटी फूटी शब्द ही बोल पा रहा था. इशारे से वो भोजन मांग रहा था. तीन दिनों से उसे भोजन नहीं मिला था.


युवाओं की टीम ने की मदद
मदद करने पहुंचे गौरीशंकर कश्यप ने बताया कि दर्द ऐसा कि चोटिल पांव में डंक मार रहे बिच्छु के दर्द का भी अहसास नहीं हो रहा था. अशोक को 18 जून को देवभोग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती किया गया. इलाज कर रहे डॉ. आदित्य चोपड़ा ने पांव में सड़न व कीड़े को देखकर गैंगरीन होने की आशंका जाहिर कर रेफर कर दिया.मदद के लिए आगे आए युवकों ने काम को अंजाम तक पहुंचाने की ठान लिया था. ऐसे में उन्होंने राजधानी की समाज सेवी संस्था मनोवैज्ञानिक औषविधि सेवा संस्था से संपर्क किया. संस्था ने पीड़ित को मेकाहारा में भर्ती करवाया.

5 दिनों तक मेकाहारा में डटे रहे युवा

संस्था के अध्यक्ष संदीप छेदैया, उपाध्यक्ष देवेंद्र वर्मा, सचिव अर्चना सिंह सेंगर, कोषाध्यक्ष वैभव श्रीवास्तव, स्वास्थ्य अध्यक्ष नारायण हेमनानी व रायपुर जिला उपाध्यक्ष आकाश सिन्हा ने 5 दिनों तक मेकाहारा में डटे रहकर अशोक का इलाज करवाया. इस बीच उसके परिवार से किसी तरह संपर्क भी कर लिया. आज अशोक का बेटा अभिषेक, दामाद संदीप रॉय व अन्य रिश्तेदार राजधानी पहुंचकर उन्हें अपने साथ पश्चिम बंगाल लेकर गए.


गूगल से ढूंढा गया अशोक का पता
संस्था की सचिव अर्चना सेंगर ने बताया कि अशोक अपना नाम बता पा रहे थे. पता पूछने पर दो तीन नाम बताते थे. उन नामों को गूगल में सर्च किया गया. हमारी टीम के वैभव दो दिन तक इसी काम मे लगे रहे. अशोक के बताए जगह बोरईपुर थाना का नंबर गूगल से मिला. एक कॉन्स्टेबल ने फोन रिसीव किया. अशोक के मुताबिक रोड मैप व नियर लोकेशन भी वेरिफाई हुआ. इस संपर्क के बाद ही पता चला कि अशोक पश्चिम बंगाल के पडकोना जिले के बरुईपुर थाना क्षेत्र के थे.


पुलिस ने बताया – थाने में दर्ज है गुमशुदगी
पुलीस ने बताया कि अशोक (57 वर्ष) बगैर किसी को बताए 16 फरवरी 2021 को घर से निकल गए थे. 21 फरवरी को गुमशुदगी भी दर्ज हुई है. पुलिस ने अशोक के बेटे अभिषेक से भी संपर्क करवाया. संस्था ने पूरे मामले की जानकारी मौदहापारा थाने में भी दी थी. अशोक के परिजन आने के बाद उन्हें विधिवत पुलिस वेरिफिकेशन के बाद आज सुपुर्द किया गया.

450 किमी सफर दर्द भरा था, भूखे पेट भी गुजारी सफर
अशोक ने अपनी भाषा में परिजनों को बताया कि 6 माह पहले जब वह ओडिशा दाखिल हुआ तब तक पैदल ही चल रहा था. ओडिशा में एक चारपहिया ने उन्हें रात को ठोकर मारकर आगे चला गया. दाहिना पांव, हाथ कंधा सभी में चोट थे. कुछ लोगो की मदद से इलाज मिला पर पांव के घाव ठीक नहीं हुए. माहभर तक घसीटकर चलता रहा. पूरी के आसपास एक मददगार ने ट्राइसाइकिल दिया. फिर उसी से आगे की सफर तय किया. कुछ घंटों की नींद उसी ट्राइसाइकिल में हुई. घाव बढ़े तो लोग देखकर भाग जाते थे. कोढ़ की आशंका से उन्हें कई जगह तो भोजन भी नहीं मिलता था. शहरी इलाके में पेट भर जाता था, जब गांव से गुजरते थे तो उन्हें भूखे रहना पड़ता था. 3-3 दिन तक भरी गर्मी में भूखे पेट गुजारनी पड़ी.


लापता होने के सालभर बाद कर दिया था पिंडदान
पिता को लेने पहुंचे बेटा अभिषेक नशकर व दामाद संदीप राय ने बताया कि गुमशुदगी दर्ज कराने के अलावा स्थानीय मीडिया में इश्तिहार के अलावा सोशल मीडिया में कैंपेनिंग भी की गई. सालभर तक जब बाबा का पता नहीं चला तो परिवार वालों की सलाह पर उनका अंतिम संस्कार का रश्म पूरा कर पिंड दान कर दिया था. अशोक के घर में पत्नी व तीन बेटियां भी रहती हैं. पिता जब ठीक थे तो ठेकेदारी का काम करते थे. पिता लापता होने के बाद मिनी ट्रांसपोर्टिग का काम कर रहे बेटे पर आ गई थी. परिजनों के मुताबिक 2018 से अशोक की मानसिक हालत बिगड़ने लगी थी. इलाज में लाखों खर्च होने के बावजूद ठीक नहीं हुए तो इसी परेशानी से वह घर छोड़ दिया था.

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