कवर्धा. प्रदेश के मुखिया डॉ रमन सिंह अपने जन्मदिन के मौके पर सपरिवार भोरमदेव मंदिर दर्शन और पूजन कर चौथी पारी की जीत का आशीर्वाद लेने आये थे जहां कुछ समय रुक कर भोजन व लोगों से मेल मुलाकात के बाद डोंगरगढ़ के लिए रवाना हुए. यूं तो सामान्य तौर पर सीएम का यह प्रवास पूरी तरह पारिवारिक और धार्मिक प्रवास कहा जा सकता है, लेकिन वहाँ पर मौजूद लोगों के मार्फ़त जो अलग-अलग जानकारी निकलकर आई है. उससे यह तो साबित हो गया है कि अनुशासन और “पार्टी विथ डिफरेंस” की बात करने वाली सत्ताधारी बीजेपी अब “पार्टी विथ डिफरेंसेस यानि अंतर्कलह” की शिकार हो चुकी है. हालात ये है कि आज जब कि चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और विपक्ष न केवल अपना योद्धा घोषित कर पूरे दम खम के साथ हर हाल में अपनी जीत को लेकर आशान्वित दिखाई दे रहा है.
इसके विपरीत 15 सालों से प्रदेश में निष्कंटक राज करने वाली भाजपा अभी तक मुखिया के घर-आंगन की सीट कवर्धा, पंडरिया से प्रत्याशियों के नाम तक नहीं तय कर सकी है. इससे यह तो जाहिर होता है कि पार्टी आलाकमान भी यहां के वर्तमान विधायकों की जीत को लेकर आस्वस्त नहीं है. अगर सब कुछ ठीक ठाक होता तो पदासीन और बहुप्रचारित विधायकों को पुनः प्रत्यासी घोषित करने में इतनी देर करने की जरूरत क्यों पड़ती? पंडरिया क्षेत्र में लाल बत्तीधारी विधायक के प्रति न केवल पार्टी के भीतर बल्कि क्षेत्र के जनमानस में भी जिस तरह विरोध की चिंगारी सुलग रही है उससे मुखिया के माथे पर बल आना स्वाभाविक है और सम्भवतः यही कारण है कि पार्टी के सामने उहापोह की स्थिति बनी हुई है.
भोरमदेव में मुख्यमंत्री और उनके सांसद पुत्र अभिषेक सिंह के सामने पंडरिया सहित जिले के अनेक दमदार और वरिष्ठ पार्टी जनो के एक प्रतिनिधिमंडल ने समवेत स्वर में यह बात रखी कि पंडरिया में इस बार किसी नए और क्षेत्रीय चेहरे को ही प्रत्यासी बनाया जाए. जन भावनाओं को देखते हुए यहां किसी स्थानीय प्रत्यासी को टिकट देने से एक बार फिर पार्टी की जीत सुनिश्चित की जा सकती हैं. मौके पर उपस्थित सूत्रों की माने तो प्रायः अपनी ढपली अपना राग अलापने वाले पंडरिया क्षेत्र के तमाम दावेदार नेता और प्रमुख कार्यकर्ताओं में उस दिन इस मुद्दे पर आश्चर्यजनक एकता दिखाई दे रही थी. जिसे देख कर मुख्यमंत्री के माथे पर बल पड़ना स्वाभाविक था. बताया जाता है कि पहली बार पंडरिया की एकजुटता को देखते हुए मुखिया ने इसे गम्भीरता से लिया है.
कबीरधाम जिले में दो सीटें है और उन दोनों सीटों पर वर्तमान में बीजेपी के विधायक है लेकिन इनके द्वारा बीते कार्यकाल में आमजन के साथ साथ पार्टी के निष्ठावान, वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के दिल में जगह बनाने की बजाय उनकी घोर उपेक्षा की गई. पूरे कार्यकाल में चन्द नवोदित और जन अपेक्षाओं से सरोकार नहीं रखने वाले स्वार्थी तत्वों को अगल बगल लेकर केवल छट्ठी बरही में शिरकत करते रहे. क्षेत्र की मूल भूत और आम जन के दैनिक जीवन में आने वाली छोटी छोटी समस्याओं को नजरअंदाज किया गया जिसके चलते अपने छोटे छोटे कामों के लिए लोग भटकते और सरकार को कोसते रहे हैं.
इसमें कोई दो मत नहीं है कि अपने बीते कार्यकाल में डॉ रमन सिंह की सरकार ने पंडरिया, कवर्धा क्षेत्र में लोक कल्याकारी कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं लेकिन सरकार की सारी उपलब्धियां यहां के जनप्रतिनिधियों के क्रिया कलापों के चलते बेअसर दिखाई दे रही हैं. खासकर पंडरिया के विधायक और उनकी मण्डली ने जिस तरह जन सरोकारों के अलावा पार्टी के हितचिंतक और वरिष्ठ लोगों की उपेक्षा की है उससे पूरे क्षेत्र में असन्तोष है और बदलाव की मांग उठ रही है. जगह जगह आम चर्चा के दौरान एक ही बात निकल कर आती है कि अगर इन्हें फिर से रिपीट किया गया तो यह भाजपा के लिए आत्मघाती होगा.
रेलवे आंदोलन को लेकर मोतीराम चंद्रवंशी ने जिस तरह की भूमिका अख्तियार की उससे भी क्षेत्र के लोग आहत हैं. एक अच्छे जनप्रतिनिधि और पार्टी के सच्चे हितचिंतक बनकर वे इस मामले को दोनों ओर से संम्भाल सकते थे. एक ओर जनभावनाओं की सही तस्वीर मुखिया के सामने रख सकते थे तो वहीं सरकार का पक्ष भी उचित अनुचित का कारण समझाते हुए आंदोलन कारियों के समक्ष रख जा सकता था. सम्भवतः ऐसा होता तो रेल की आग इतना बड़ा रूप नहीं ले पाती, किन्तु क्षेत्रीय विधायक ने ऐसा करने की बजाय उल्टे आंदोलनकारियों को ही जेल भेजने की धमकी दे दी.
बहरहाल पंडरिया विधानसभा में उठ रही स्थानीय प्रत्यासी की मांग धीरे धीरे जन जन की आवाज बनती जा रही है, जिसे नजरअंदाज करना पराजय को आमंत्रण देना हो सकता है. इस बार पंडरिया में अपने किसी बाहरी प्रियपात्र को थोपना महंगा पड़ेगा. वर्तमान विधायक पंडरिया कवर्धा का निवासी है जो ख़ुद को वोट पंडरिया में नही किया था और न 5 साल में पंडरिया में विधायक कार्यालय तक नहीं खोल सका है.