सुशील सलाम,कांकेर. प्रदेश को स्मार्ट सिटी बनाने की कवायद तो जोरो पर चल रही है, लेकिन कुछ गांव ऐसे भी जहां ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के लिए आज भी कोशो दूर है. गांव में न तो बिजली है न ही पेयजल की व्यवस्था है ग्रामीण एक ही हैंडपंप के सहारे अपना जीवन यापन करते हैं. यह गांव कोई और नहीं बल्कि कांकेर जिले से 180 कि.मी. दूर घने जंगल में बसा ग्राम पंचायत कंदाड़ी का आश्रित गांव कलपर है.

कलपर गांव में करीब 50 लोग रहते हैं. अभी से ही यहां पेयजल संकट गहराने लगा है, क्योंकि गांव में मात्र एक हैंडपंप लगाया गया है. आदिवासी समुदाय के लोगों के पास वनाधिकार पट्टा और राजस्व पट्टा नहीं है. बरसों बाद भी यहां स्कूल नहीं है. आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है. जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. यहां के आदिवासियों में कुपोषण गहरा गया है और कुपोषण के शिकार आदिवासियों को जल्द ही सरकारी मदद का इंतजार है. गांव में स्कूल नहीं होने के कारण आदिवासी बच्चों को पढ़ाई लिखाई से वंचित होना पड़ रहा है.

नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण जिला प्रशासन और सरकार की योजनाओं का लाभ आदिवासियों को नहीं मिल रहा है. जाहिर सी बात है कि आदिवासियों की अशिक्षा को दूर करने के लिए शासन प्रशासन कोशिश नहीं कर रहा है. बरसात के दिनों में कलपर के आदिवासियों को बीमार पड़ने पर गांव के ही दवा दारू पर निर्भर रहना पड़ता है. यहां चिकित्सक कभी कभार ही जाते हैं. शायद यही वजह है कि आदिवासियों को सरकार की अनेक योजनाओं के बाद भी कोई लाभ नहीं मिल रहा है. दूसरी ओर, कागजों में विकास कार्य कराने वाले अफसरों की कानों में जूं तक नहीं रेंगती है. ग्रामीणों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.