नई दिल्ली। जब भी कोई मरीज अस्पताल आता है, तो आमतौर पर उसके साथ उसका कोई करीबी होता है. अस्पताल में भर्ती होने की सूरत में वही उसकी तीमारदारी और इलाज का खर्च उठाता है. अगर मरीज के साथ कोई पारिवारिक सदस्य ना हो, तो मरीज खुद अपने इलाज का खर्च उठाता है या फिर अपने परिजनों का नाम-पता बताता है, ताकि उन्हें मदद के लिए बुलाया जा सके. लेकिन एक मरीज के अजीबोगरीब मामले ने अस्पताल और अदालत, दोनों को उलझन में डाल रखा है.

दरअसल, 84 साल की गायनोलॉजिस्ट डॉक्टर सुंदरी जी भगवानानी पिछले 6 साल से दिल्ली के मूलचंद अस्पताल में एडमिट हैं. वह अल्जाइमर के अडवांस स्टेज से जूझ रही हैं. कनाडा में रहने वाले उनके भाई उनका इलाज करा रहे थे, लेकिन दो साल पहले कोरोना की वजह से उनकी मौत हो गई. अब चूंकि सुंदरी की याददाश्त ठीक नहीं, तो वह अपने किसी परिजन के बारे में बता भी नहीं पा रहीं.

अस्पताल का बिल लगातार बढ़ रहा है. यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट तक भी पहुंच गया और यह याचिका भी सुंदरी के भाई ने दाखिल की थी. अदालत ने इंसानियत के नाम पर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की, लेकिन अस्पताल को उस पर अमल करने पर ऐतराज है. उसने एक अपील भी दाखिल कर दी है कि अदालत का सुझाया रास्ता सही नहीं है और इससे उसे और भी ज्यादा नुकसान होगा.

दरअसल, सुंदरी का मामला बेहद पेचीदा है और उनसे जुड़े कई सवाल अनसुलझे हैं. जैसे कि सुंदरी अमेरिकी नागरिक हैं, लेकिन वह हज़ारों किलोमीटर का सफर तय करके भारत कैसे आईं? वह अस्पताल किन परिस्थितियों में पहुंचीं? उनके परिजन कहां हैं और क्या वे उनकी तलाश कर रहे हैं? जाहिर तौर पर इन सवालों का जवाब सुंदरी ही दे सकती हैं, लेकिन वह इस हालत में हैं ही नहीं.

सुंदरी साल 2017 में मूलचंद अस्पताल में भर्ती हुईं. उस वक़्त इलाज का खर्च उनके 75 साल के भाई मोहन उठा रहे थे, जो कनाडा में रहते थे. लेकिन, फिर कोरोना महामारी आ गई औ उसने ना कितने लोगों को बेसहारा कर दिया. इनमें सुंदरी भी शामिल हैं, क्योंकि कोरोना से उनके भाई मोहन का इंतकाल हो गया, जो उन्हें जानने और उनकी देखरेख करने वाले इकलौते शख्स थे.

भाई उठा रहा था बहन का खर्चा

2019 में भगवानानी और कनाडा में रहने वाले उनके 75 वर्षीय भाई मोहन अपनी बहन की देखरेख कर रहे थे. लेकिन 2021 में उनकी भी कोरोना के कारण मौत हो गई थी. इससे पहले मोहन ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील कर अपने बहन के अकाउंट का एक्सेस मांगा था ताकि वो भगवानानी का इलाज जारी रख सकें. उन्होंने कोर्ट में कहा था कि वह अपनी बहन के इलाज के लिए अबतक मूलचंद अस्पताल को 50 लाख रुपये दे चुके हैं. मोहन ने कोर्ट में कहा था कि वो संसाधनों से जूझ रहे हैं और वो खुद भी बूढ़े हैं. उन्होंने कोर्ट से अपनी बहन का गार्जियन बनाने की मांग की थी. लेकिन कहते हैं न कि किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. इससे पहले कि कोर्ट मोहन की याचिका पर कोई आदेश पारित करता उनकी कनाडा में मौत हो गई. इसके

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