सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने उन जजों की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है, जो सेवानिवृत्ति से ठीक पहले बड़ी संख्या में फैसले सुनाने लगते हैं। शीर्ष अदालत ने इसे क्रिकेट मैच के आखिरी ओवर से तुलना करते हुए कहा कि यह उस समय की तरह है, जब बल्लेबाज लगातार छक्के लगाने की कोशिश करता है। यह टिप्पणी मध्य प्रदेश के एक प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान की गई। आरोप है कि संबंधित जज ने रिटायरमेंट से लगभग 10 दिन पहले कई विवादास्पद मामलों में फैसले सुना दिए थे। इस आधार पर उन्हें निलंबित कर दिया गया था, जिसे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच जिसमें जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली भी शामिल थे ने सुनवाई के दौरान कहा कि रिटायरमेंट से पहले ‘छक्के मारने’ की यह प्रवृत्ति दुर्भाग्यपूर्ण है।

रिटायरमेंट से 10 दिन पहले सस्पेंड

चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जजों में रिटायरमेंट से पहले बड़ी संख्या में आदेश पारित करने का चलन बढ़ता जा रहा है। बेंच ने याचिका पर सीधे हस्तक्षेप करने से इनकार किया, लेकिन संबंधित जज को हाई कोर्ट में अपील करने की अनुमति दी और कहा कि उनकी अर्जी पर चार हफ्तों के भीतर फैसला लिया जाए। मामले में उल्लेख है कि प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश 30 नवंबर को रिटायर होने वाले थे, जबकि 19 नवंबर को उन्हें निलंबित कर दिया गया था।

क्या दलीलें दी गईं?

वरिष्ठ अधिवक्ता विपिन सांघी ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल का करियर अत्यंत प्रतिष्ठित रहा है और उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) में रेटिंग भी बहुत अच्छी रही। प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश 30 नवंबर को रिटायर होने वाले थे, लेकिन 19 नवंबर को उन्हें निलंबित कर दिया गया। सांघी ने बताया कि निलंबन का आधार उनके मुवक्किल द्वारा सुनाए गए दो न्यायिक फैसले थे। उन्होंने सवाल उठाया, “किसी अधिकारी को ऐसे न्यायिक फैसलों के लिए कैसे निलंबित किया जा सकता है, जिनके खिलाफ अपील की जा सकती है और जिन्हें उच्च न्यायपालिका सुधार सकती है?”

‘…अगर फैसले साफ तौर पर बेईमानी वाले हों तो?’

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, “गलत फैसले सुनाने के लिए किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती और न ही उन्हें सस्पेंड किया जा सकता है। हालांकि, अगर फैसले साफ तौर पर बेईमानी वाले हों तो अलग मामला है।” उल्लेखनीय है कि यह न्यायिक अधिकारी 30 नवंबर को रिटायर होने वाले थे। हालांकि, 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि उनके रिटायरमेंट को एक साल के लिए टाला जाए, क्योंकि राज्य कर्मचारियों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाकर 62 साल कर दी गई थी। इसके बाद अब यह न्यायिक अधिकारी 30 नवंबर, 2026 को रिटायर होंगे।

कोर्ट ने क्या कहा?

मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा, “जब न्यायिक अधिकारी ने वे दो फैसले सुनाए थे, तब उन्हें यह पता नहीं था कि उनकी रिटायरमेंट की उम्र एक साल बढ़ा दी गई है। जजों के बीच रिटायरमेंट से ठीक पहले कई फैसले सुनाने का चलन बढ़ता जा रहा है।”

बेंच ने वकील विपिन सांघी से पूछा कि अधिकारी ने सस्पेंशन को चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट का रुख क्यों नहीं किया। अदालत ने यह भी आपत्ति जताई कि न्यायिक अधिकारी ने अपने सस्पेंशन के कारण जानने के लिए सूचना का अधिकार (RTI) आवेदन किया।

कोर्ट ने कहा, “यह उम्मीद नहीं की जाती कि एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी जानकारी प्राप्त करने के लिए RTI का रास्ता अपनाएं। हमें याचिका सुनने का कोई आधार नहीं दिखता। याचिकाकर्ता हाई कोर्ट में प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, जिस पर चार हफ्तों के भीतर फैसला लिया जाएगा।”

सिस्टम में हैं गड़बड़ियां?

विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठाता है। रिटायरमेंट के करीब जजों द्वारा लिए गए फैसलों पर सवाल उठना चिंता का विषय है और यह संकेत देता है कि सिस्टम में सुधार की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ इस समस्या को उजागर करती हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि आगे उचित कार्रवाई होगी। न्यायपालिका के अधिकारियों को हमेशा निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम करना चाहिए, चाहे वे किसी भी पद पर हों या रिटायरमेंट के कितने भी करीब हों।

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