रायपुर. एडवांस्ड कार्डियक इंस्टिट्यूट (ACI) में अष्ट व्रक रीढ़ के मरीज का हार्टअटैक से दिल की फटी दिवार को बटन डिवाइस से बंद किया गया है. अक्टूबर 2018 को भी ऐसे ही एक मरीज का बटन डिवाइस (टीसीसी – ट्रांसक्यूटेनियस क्लोजर) से इलाज कर उनकी जान बचाई गई थी, जो मध्य भारत की ऐसी पहली सफल प्रक्रिया थी. शत-प्रतिशत मृत्यु वाली इस बीमारी के 8 मरीज अभी तक एडवांस्ड कार्डियक इंस्टिट्यूट में आएं हैं, जिनमें दो मरीज ही बचाई जा सकी हैं.

इस सर्जरी में प्रोफेसर डॉ. स्मित श्रीवास्तव के साथ निश्चेतना विभाग से डॉ. शशांक, डॉ. फाल्गुधारा पांडा, कार्डियक सर्जरी से डॉ. निशांत सिंह चंदेल, कार्डियोलॉजी से डॉ. जोगेश, डॉ. सरजू, डॉ. निधि, टेक्नीतिशअन इनचार्ज आईपी वर्मा, नवीन ठाकुर, खेम सिंह, अश्वन्तिन, महेंद्र, प्रेम, कुसुम, और नर्सिंग सिस्टर में हेमलता, पूर्णिमा, अनीता व निर्मला को सफलता मिली है.

चुनौती पूर्ण होती है प्रक्रिया

27 अप्रैल को 71 वर्षीय मरीज को अचानक हार्टअटैक आया और शॉक की स्थिति में एडवांस्ड कार्डियक इंस्टिट्यूट रेफेर कर दिया गया. अष्ट व्रक रीढ़ से लगातार खिचाव होने के कारण मरीज पैरों को ऑपरेशन टेबल पर सीधा स्थिर नहीं रख पा रहा था. शनिवार को सुराख को जांचने के लिए एंजियोग्राफी का कार्डियक कैथिटर रीढ़ के अति टेढ़ेपन के कारण को महाधमनी एओर्टा से पार नहीं जा पाया था और इकोकार्डियोग्राफी से सुराख का अनुमान लगाकर सुराख और हार्ट की बंद नसों की एंजियोप्लास्टी की योजना बनाई गई. बटन डिवाइस (टीसीसी – ट्रांसक्यूटेनियस क्लोजर) की प्रक्रिया ऐसे शॉक के मरीज में स्वयं में ही चुनौती पूर्ण होती है. अष्ट व्रक रीढ़ के टेढ़ेपन के कारण ऑपरेशन और ज्यादा जटिल हो गया था.

मरीज ऑपरेशन टेबल पर स्थिर नहीं लेट पा रहा था, हर क्षण रीढ़ से पैरों की माशपेशियों में संकुचन की लहर उठती थी, जो प्रक्रिया की प्रगति को शुन्य कर पुनः प्रारंभ करना पड़ता था. मरीज की पहले हार्ट की दो नसों की एंजियोप्लास्टी की गई ताकि हार्ट को सपोर्ट मिल सके और सुराख को बंद करने की लंबी और कठिन प्रक्रिया को सहन कर सके. फिर तुरंत सुराख को बटन डिवाइस (टीसीसी – ट्रांसक्यूटेनियस क्लोजर) से इलाज किया गया. सुराख और हार्ट की बंद नसों की एंजियोप्लास्टी सफल होने दे बाद अष्ट व्रक रीढ़ के टेढ़ेपन से निर्मित अति संकर्षण से कार्डियक कैथिटर का शिरा दिल के अंदर ही टूट गया, जिसे फिर फंदा से महाधमनी एओर्टा से मछली की तरह पकड़ कर निकाला गया. सुराख के बंद होते ही मरीज का ब्लड प्रेशर सामान्य हो गया और इंस्टिट्यूट से छुट्टी दे दी गई.

दिल की फटी दिवार को बंद करने में बटन डिवाइस कारगर

हार्टअटैक से दिल की फटी दिवार (पीएमवीएसआर – पोस्ट मायोकार्डियल इंफार्क्शन वेंट्रिकुलर रप्चर) तीव्र हार्ट अटैक की एक दुर्लभ लेकिन घातक जटिलता है. सिर्फ दवाइयों से इलाज करने पर कोई भी मरीज जीवित नहीं बच पाता है, अस्पताल में भर्ती होते ही 94 प्रतिशत से अधिक मृत्यु को प्राप्त होते हैं, इसलिए तुरंत सर्जरी किए जाने की सलाह दी गई हैं, लेकिन अधिकतर मरीज सर्जरी के लिए फिट नहीं होते हैं. दूरबीन पद्धति से बटन डिवाइस से बंद करने की नई टेक्निक से चयनित मामलों में एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में तेजी से उभर रही है.

उन्नत आयु में हार्टअटैक से दिल की दिवार फटने की संभावना ज्यादा

उन्नत आयु और महिलाओं में हार्टअटैक से दिल की फटी दिवार के दुर्घटना की संभावना ज्यादा होती है. पीएमवीएसआर में हार्ट के अंदर की दीवार इंटरवेंट्रिकुलर सेप्टम में हार्टअटैक से मांसपेशियों के क्षय होने से छेद हो जाता है. पीएमवीएसआर हार्टअटैक के बाद पहले सप्ताह में होता है, जो ज्यादातर मरीज को तुरंत शॉक की स्थिति में पहुंचा देता है. पीएमवीएसआर अचानक ह्रदय के बाएं से दाएं खून के रिसाव का कारण बनता है, जो फेफड़ों के रक्त प्रवाह को बढ़ाता है, जिससे फेफड़ों में तुरंत पानी भर जाता है. बाएं से दाएं रिसाव से हार्ट फैल हो जाता है और ब्लड प्रेशर निम्न हो जाता है इसलिए इलाज में देरी होने से सभी मरीजों की मृत्यु हो जाती है. इकोकार्डियोग्राफी से 50 प्रतिशत मरीजों में पीएमवीएसआर देखा जा सकता है इसलिए कोरोनरी एंजियोग्राफी से ही सही डायग्नोसिस की जा सकती है.

सर्जरी बनाम ट्रांसक्यूटेनियस क्लोजर

चिकित्सा प्रबंधन के साथ 94 प्रतिशत से अधिक अस्पताल में मृत्यु दर के साथ वर्तमान दिशा निर्देश सर्जिकल मरम्मत की सलाह देते हैं. हालांकि बटन डिवाइस (टीसीसी – ट्रांसक्यूटेनियस क्लोजर) में हालिया प्रगति चयनित मामलों में एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में तेजी से उभर रही है. बड़े अध्ययनों की कमी प्रारंभिक या विलंबित सर्जरी या बटन डिवाइस (टीसीसी – ट्रांसक्यूटेनियस क्लोजर) से लाभान्वित होने वाले रोगियों को वर्गीकरण करने से रोकती है. पीएमवीएसआर एक संभावित घातक जटिलता है और इसके लिए प्रारंभिक उपचार की आवश्यकता होती है. अधिमानतः सर्जिकल और ट्रांसक्यूटेनियस मरम्मत मामलों में अनुपचारित चिकित्सकीय रूप से प्रबंधित मामलों के लिए मृत्यु दर लगभग शत प्रतिशत है.