सुप्रिया पांडे,रायपुर। राजधानी के एसएमसी हार्ट इंस्टीट्यूट अस्पताल में जीने की उम्मीद छोड़ चुके मरीज का डॉक्टरों की टीम ने सफल इलाज किया है. मरीज को चार दिन पहले ह्रदयघात हुआ था और उसका दायें ओर की धमनी पूरी तरह से बंद थी और बाएं तरफ की एक धमनी में भी 90 प्रतिशत ब्लाकेज था. मरीज की गंभीर बीमारी को देखते हुए रायपुर के बाकी अस्पताल के डॉक्टरों ने मरीज का इलाज नहीं करने की बात कही. परेशान मरीज ने एसएमसी हार्ट इंस्टीट्यूट अस्पताल का दरवाजा खटखटाया और यहां के डॉक्टरों ने मरीज के इलाज करने का प्रयास किया और उसमें सफल भी हुए.
आमतौर पर देखा जाता है कि इस तरह कि बीमारी का इलाज कर पाना नामूमकिन हो जाता है, लेकिन डॉक्टरों की टीम ने उम्मीद नहीं छोड़ी और मरीज की बीमारी का सफल इलाज किया और अब मरीज की हालत में सुधार को देखते हुए उन्हे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
मरीज का इलाज कर चुके डॉ. एसएस मोहंती ने बताया कि मरीज 3 हॉस्पिटल से गुजर कर यहां आया था वहां भी हार्ट की सर्जरी करने वाले कार्डियक सर्जन मौजूद थे. ऐसे केस में 70% ये देखा जाता है कि मरीज की जान चली जाती है आमतौर पर डॉक्टर ऐसे हालात में मरीज का इलाज नहीं करते है. उन्हें बाहर भेज देते है, लेकिन डॉक्टर चौरसिया ने सोचा कि इनका इलाज करना चहिए और ऐसा पहला मामला नहीं है 4 मरीज और हमारे अस्पताल में मौजूद है.
हृदयरोग एवं शल्य चिकित्सक डॉ. अजय चौरसिया ने बताया कि हृदयघात की बीमारी के बाद खून का प्रवाह रुक जाता है और ये इतना तीव्र होता है कि हार्ट की मसल्स गल जाती है और एक छिद्र बना लेती है. नॉर्मल सर्जरी से ये कई गुना कठिन होता है. एक प्रकार का जटिल ऑपरेशन है, जो हार्ट के ऊपर टांके लगाना होता है. इसे आप हेल्थी मसल्स पर लगा सकते है, लेकिन हृदयाघात के बाद में मांशपेशियों कमजोर हो जाती है तो वहां पर टांके लगाना कठिन होता है.
सारे कार्डियक सेंटर में हृदयाघात का इलाज होता है. हृदयाघात के साथ दिल में छेद हो जाना और गल के गुब्बारा बन जाना इससे हार्ट काफी डैमेज हो जाता है. इस केस में मरीज को बचाने के लिए मात्र 30 प्रतिशत उम्मीद होती है.