रात 12 बजे से 3 बजे तक का समय आमतौर पर पूजा-पाठ, जप-तप या शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना गया है. इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक और शास्त्रीय कारण है. हिन्दू धर्म में रात्रि को चार प्रहरों में बांटा गया है, जिनमें अंतिम प्रहर का अंत ब्रह्ममुहूर्त पर होता है.

क्यों नहीं करते पूजा इस समय?

रात्रि का मध्यकाल विशेषकर 12 बजे से 3 बजे तक राक्षसी काल या तामसिक समय माना गया है. यह समय तामसिक और नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में होता है. मान्यता है कि इस काल में तंत्र, भूत-प्रेत, पिशाच, राक्षस प्रवृत्ति की शक्तियाँ सक्रिय रहती हैं. यह समय सामान्यतः तांत्रिक क्रियाओं, श्मशान साधना या नीच साधना के लिए होता है. देवता और देवगुण इस समय सुप्त रहते हैं, अतः पूजन अप्रभावी होता है.

ब्रह्ममुहूर्त बनाम रात्रि मध्यकाल

ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 3:30 से 5:30 के बीच) को शास्त्रों में सबसे उत्तम समय बताया गया है. ध्यान, मंत्र जाप और पूजा के लिए. इसके लिए कि एक श्लोक भी आता है. ब्रह्ममुहूर्ते उत्तिष्ठेत स्वस्थो रक्षार्थमायुषः आयु, बुद्धि और तेज के लिए ब्रह्ममुहूर्त में उठना श्रेष्ठ है.