अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व (US Fed) आज, बुधवार (17 सितंबर) को एक अहम फैसला लेने जा रहा है. अनुमान है कि बैंक ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट्स (0.25%) की कटौती कर सकता है. इसके बाद फेड रेट्स 4% से 4.25% के दायरे में आ जाएंगे. यह कदम सीधे तौर पर अमेरिका की महंगाई दर और लोन की लागत को प्रभावित करेगा. वहीं, भारत जैसे उभरते बाजारों में अमेरिकी निवेश बढ़ने की संभावना भी जताई जा रही है.

पिछले फैसलों से सीख – कब कितनी कटौती हुई थी?

पिछले साल फेडरल रिजर्व ने लगातार तीन बार रेट्स घटाए थे. दिसंबर में 0.25%, नवंबर में 0.50% और सितंबर में 0.25% की कमी की गई थी. इसके बाद रेट्स 4.25% से 4.50% के बीच स्थिर रहे.

सितंबर 2024 की कटौती खास रही क्योंकि यह लगभग चार साल बाद हुई थी. इससे पहले मार्च 2020 में फेड ने महामारी के दौर में रेट्स घटाए थे. वहीं, मार्च 2022 से जुलाई 2023 के बीच महंगाई से लड़ने के लिए फेड ने लगातार 11 बार रेट्स बढ़ाए, जिससे लोन महंगे हो गए.

US Fed क्यों अहम हैं?

फेडरल रेट्स यह तय करते हैं कि बैंक एक-दूसरे को दिए गए लोन पर एक रात का ब्याज कितना देंगे. हालांकि, इसका असर सिर्फ बैंकिंग सिस्टम तक सीमित नहीं रहता.

यह सीधे तौर पर कंज्यूमर लोन, होम मॉर्गेज, क्रेडिट कार्ड्स और ऑटो लोन पर भी दिखता है. जब फेड दर घटाता है तो आम लोगों को सस्ता कर्ज मिलता है, जिससे खपत और निवेश दोनों बढ़ते हैं.

कटौती के संभावित असर – राहत या खतरा?

ज्यादा कटौती: इससे संकेत जा सकता है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था कमजोर है. निवेशकों का भरोसा डगमगा सकता है.

कम कटौती: अगर बाजार ज्यादा राहत की उम्मीद लगाए बैठा है तो निराशा बढ़ सकती है.

कटौती में देरी: रोजगार बाजार (Job Market) धीमा हो सकता है और आर्थिक सुधार की गति थम सकती है.

पॉलिसी रेट – महंगाई से लड़ने का हथियार

हर सेंट्रल बैंक की तरह फेड के पास भी पॉलिसी रेट महंगाई पर नियंत्रण का सबसे मजबूत टूल है.

जब महंगाई ज्यादा होती है तो पॉलिसी रेट बढ़ाकर मनी फ्लो घटाया जाता है, जिससे डिमांड कम होती है और दाम नीचे आते हैं.

वहीं जब अर्थव्यवस्था सुस्त होती है तो पॉलिसी रेट घटाकर लोन सस्ते किए जाते हैं, ताकि लोग ज्यादा खर्च और निवेश करें और अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटे.

भारत पर क्या असर होगा?

विशेषज्ञों का मानना है कि फेड की संभावित कटौती से भारतीय शेयर बाजार और रुपया दोनों पर सकारात्मक असर पड़ेगा. अमेरिकी निवेशक यहां ज्यादा पूंजी लगा सकते हैं. वहीं, आईटी और मैन्युफैक्चरिंग जैसे सेक्टर में विदेशी फंडिंग बढ़ने की संभावना है.

नतीजा साफ है – फेडरल रिजर्व का आज का फैसला सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था की दिशा तय करेगा. सवाल यही है कि क्या 0.25% की यह कटौती राहत की सौगात बनेगी या मंदी की दस्तक?