नवरात्रि में हर तरफ देवी मां के जयकारे की गुंज सुनाई दे रही है. देशभर में कई ऐसे मंदिर हैं जहां कई तरह के चमत्कार देखने को मिलता है. ऐसा ही एक मंदिर राजस्थान के अजमेर में बोराज गांव की पहाड़ियों पर बना है. यहां मंदिर परिसर में जल का एक छोटा सा कुंड है, जो किसी चमत्कार से कम नहीं है. यह कुंड ढाई फीट गहरा और ढाई फीट चौड़ा है. जब से मंदिर की स्थापना हुई है, तब से लेकर आज तक जलकुंड का पानी कभी कम नहीं हुआ है. यहां तलवारों के साथ आरती होती है.

बता दें कि ये मंदिर बोराज गांव के पास अरावली की पहाड़ियों पर स्थित मां चामुंडा का है. इस मंदिर की स्थापना सम्राट पृथ्वीराज चौहान द्वारा 11वीं शताब्दी में की गई थी. ये वीरता, आस्था और इतिहास का प्रतीक है. कहा जाता है कि 1160 साल पहले स्थापित इस मंदिर में स्वयं मां चामुंडा ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान को दर्शन दिया था. पृथ्वीराज अपनी कुलदेवी मां चामुंडा से आशीर्वाद लेकर ही युद्ध के लिए निकलते थे और मोहम्मद गौरी को 17 बार हराने का श्रेय भी इन्हीं की कृपा को दिया जाता है.

रोगों से मुक्ति प्रदान करता है कुंड का पानी

मां चामुंडा मंदिर के पुजारी मदन सिंह ने बताया कि प्रांगण में जो जलकुंड है, वह काफी प्राचीन है. इस कुंड से हजारों गैलन पानी निकाला जाता रहा है, फिर भी यह कभी खाली नहीं होता है. मंदिर में माता का स्नान भी इस कुंड के पानी से होता है. सर्दियों में यह पानी गर्म और गर्मियों में ठंडा रहता है. इस कुंड के जल को गंगा के समान पवित्र माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस कुंड का जल आध्यात्मिक शुद्धि और रोगों से मुक्ति प्रदान करता है.

कुंड में सिक्के डालकर मांगा जाता है मन्नत

पुजारी मदन सिंह ने आगे बताया कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान चामुंडा माता के अनन्य भक्त थे. ग्यारहवीं शताब्दी में इसी कुंड के पानी से समूचे मंदिर का निर्माण कराया गया था. लोग चामुंडा माता मंदिर के दर्शन के साथ-साथ कुंड को भी आस्था केंद्र मानते हुए नमन करते हैं. इसमें सिक्के डालकर मन्नत मांगते हैं.

1300 फीट की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है मंदिर

बता दें कि मां चामुंडा का मंदिर लगभग 1300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. मन्नत पूरी होने पर भक्त मां के मंदिर में चुनरी बांधते हैं. पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस मंदिर में माथा टेककर हर श्रद्धालु खुद को धन्य महसूस करता है. इस मंदिर की अनोखी परंपरा में तलवारों के साथ आरती होती है.