रायपुर। रंगमंच आत्मा का विस्तार है. अनुभूतियों के तादाम्य का विस्तार है. यह संस्कार हमें बाल्यकाल से ही प्राप्त होता है. हमारी मनोरंजनकारी कलाएं हमारी संवेदना का विस्तार करती है. यह बातें बतौर प्रमुख वक्ता सुप्रसिद्ध रंगकर्मी और पद्मश्री सम्मान से सम्मानित प्रो. राजगोपाल बजाज ने इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ की ओर से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में कही. उन्होने यह भी कहा कि रंगमंच की शिक्षा पहली कक्षा से ही दी जानी चाहिए. हमारी दुनिया के रंगमंच है. इस रंगमंचीय दुनिया में हम तरह की किरदारों को जीते हैं.

वहीं प्रमुख वक्ता के रूप में ही प्रसिद्ध निर्देशक पद्मश्री से सम्मानित प्रो. वामन केंद्रे ने कहा कि हमारा भाषाई रंगमंच ही हमारा राष्ट्रीय रंगमंच है. जिसकी अपनी भाषा होगी अपनी संवेदनाएं होंगी वही श्रेष्ठ रंगमंच होगा. इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हबीब तनवीर हैं.

विश्वविद्यालय की कुलपति पद्मश्री मोक्षदा(ममता) चंद्राकर ने कहा कि रंगमंच भटकते हुए व्यक्ति का जीवन संवार सकता है. रंगमंच में बड़ी ताकता होती है. उन्होने कहा कि काव्य, कला का उत्कृष्ट रूप है और नाटक उत्कृष्टतम रूप है. उन्होंने भारतीय आधुनिक रंगमंच के सूत्रधार हबीब तनवीर, इब्राहिम अल्काजी, ब ब व कारन्त को याद करते हुवे शम्भू मित्र बादल सरकार का भी स्मरण किया. उन्होंने छत्तीसगढ़ को प्रयोग की भूमि बताया और भारतीय रंगमंच में छत्तीसगढ़ के लालू राम, मदन निषाद, फिदा बाई जैसे कलाकारों की भूमिका को भी रेखांकित किया.

फ़िल्म व रंगमंच के सुप्रसिद्ध अभिनेता राजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि रंगमंच अपने मूलरूप में स्थानीय होता. वह उस समाज, उस शहर का होता है, जहाँ उसकी जड़े होती हैं. इब्राहिम अल्काजी को याद करते हुवे राजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि आज के भारतीय रंगमंच पर इब्राहिम अल्काजी का विशेष प्रभाव दिखाई देता है.

सुप्रसिद्ध नाट्य लेखिका निर्देशिका प्रो. त्रिपुरारी शर्मा ने कहा कि हमेशा से ही हमारी थिएटर कम्यूनिटी का समाज के प्रति उत्तरदायित्व बना रहता है. लोक व रंगमंच का कलाकार केवल कहानी नही दिखाता, बल्कि वह टिप्पणी भी करता है. प्रो सत्यव्रत राउत ने ब व कारन्त के योगदान की चर्चा करते हुवे कहा कि कला का स्वरूप बहुआयामी होता है. उसका कोई एक परिप्रेक्ष्य नही होता है. नार्वे के प्रसिद्ध साहित्यकार, अनुवादक सुरेशचंद्र शुक्ल ने नार्वे के रंगजगत की चर्चा करते हुवे कहा कि रंगमंच सामूहिक सृजन है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुवे छत्तीसगढ़ के प्रमुख साहित्यकार व आलोचक डॉ सुशील त्रिवेदी ने कहा कि रंगमंच के लिए समकालीन संवेदना ज़रूरी है. हबीब तनवीर तथा ब व कारन्त को याद करते हुवे उन्होंने कहा कि उनके नाटकों ने रंगमंच और समाज को जोड़े रखा. विचारों की अभिव्यक्ति ही रंगमंच की पहली शर्त है.

सुप्रसिद्ध साहित्यकार व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि बाजारवाद के कारण हमारा गाँव हाशिये पर जा रहा है. गाँव भाषा-बोली को बचाये रखना ज़रूरी है, तभी हम जनता की पीड़ा को उसका स्वर दे पाएँगे. छत्तीसगढ़ मित्र के प्रबंध संपादक डॉ. सुधीर शर्मा ने हबीब तनवीर की परंपरा को संरक्षित करने के उद्देश्य से हबीब तनवीर पीठ की स्थापना का सुझाव दिया.

वरिष्ठ पत्रकार व समीक्षक गिरिजाशंकर ने कहा कि रंगमंच में हमेशा से दो धाराएं दिखाई देती है. एक लोक की और दूसरी नागर की. उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोकरंगमन्च के संवाहक रामचन्द्र देशमुख, दाऊ मंदराजी और महासिंह चंद्राकर के योगदान की चर्चा की ओर कहा कि हबीब का रंगकर्म उसी का विस्तार है.

संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित राजकमल नायक ने कहा कि छत्तीसगढ़ के नाटकों में भारतेंदु का प्रभाव अधिक दिखाई देता है. वहीं छत्तीसगढ़ी नाटककार रामनाथ साहू ने छत्तीसगढ़ी नाटकों के लेखन व रंगमंचीय प्रयोगों की चर्चा की व छत्तीसगढ़ी नाटकों को पुनर्स्थापित करने पर जोर दिया. लोक रंगमंच से जुड़े भूपेंद्र साहू ने ब व कारन्त को याद करते हुवे उनके प्रशिक्षण व छत्तीसगढ़ी लोक नाटकों के बदलते स्वरूप पर चर्चा की. जबकि छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध नाटकार अख्तर अली ने छत्तीसगढ़ के नाटककारों की चर्चा करते हुए विभु कुमार व प्रेम साइमन के महत्व को रेखांकित किया.

संस्कृतिकर्मी सुभाष मिश्रा ने छत्तीसगढ़ के वर्तमान रंगपरिदृश पर अपनी चिंता प्रकट करते हुए कहा की यह दुखद है कि हमारी एक लंबी परम्परा होने के बाद भी हमारी कोई राष्ट्रीय पहचान नही बन पाई है. देश के प्रमुख नाटककार साहित्यकार डॉ. संदीप अवस्थी ने कहा कि छत्तीसगढ़ का रंगकर्म हमेशा से आधुनिक रहा है.

प्रो. आई. डी. तिवारी ने सभी वक्ताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया. विशेष रूप से छत्तीसगढ़ मित्र के विशेष सहयोग के लिए व तकनीकी सत्र संयोजन के लिए डॉ सुधीर शर्मा का विशेष रूप से धन्यवाद दिया. अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का संचालन डॉ. योगेन्द्र चौबे सहायक प्राध्यापक नाट्य विभाग इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ ने किया .बता दें कि वेबिनार में भारतीय सांस्कृतिक दूतावास तेहरान के निदेशक अभय कुमार सिंह पर्यवेक्षक के रूप में उपस्थित थे. वहीं  वेबिनार में नार्वे, तेहरान बोस्टन सहित देश व छत्तीसगढ़ से लगभग 180 प्रतिभागियों ने भाग लिया.