प्रतीक चौहान. रायपुर. अगर आप भी आयुष्मान कार्ड से इलाज कराने की सोच रहे है या अचानक आपको आयुष्मान कार्ड से इलाज की जरूरत पड़ गई तो संभव है कि आपको कई परेसानियों का सामना करना पड़ सकता है. इतना ही नहीं इलाज करने वाले डॉक्टर्स को भी कई समस्याएं होने वाली है. ऐसा इसलिए क्योंकि स्वास्थ्य विभाग ने आयुष्मान कार्ड से इलाज के लिए अस्पतालों की इंटरनल व्यवस्था के लिए Hem 2.0 पोर्टल लॉंच किया है. लेकिन इसका आलम ठीक वैसे ही है जिसमें ‘शादी का निमंत्रण तो बांट दिया गया है, लेकिन दुल्हन मिलनी अब तक बाकी है’. ऐसा इसलिए क्योंकि स्वास्थ्य विभाग ने पोर्टल तो लांच कर दिया, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के उन अधिकारियों की आईडी ही जनरेट नहीं की जिनको अस्पतालों की समस्याओं का समाधान करना है. यही कारण है कि निजी अस्पताल प्रबंधन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के चक्कर लगा रहे है.
आयुष्मान से इलाज में क्या-क्या समस्या आ रही मरीजों को ?
यदि आपके पास एपीएल कैटेगिरी में आते है और आपके पास 50 हजार रुपए वाला आयुष्मान है और यदि मरीज को हार्ट अटैक आता है और उसे एंजियोप्लास्टी की जरूरत पड़ी तो वर्तमान में वे आयुष्मान से अपना इलाज नहीं करा पा रहा है. क्योंकि जब वो अस्पताल पहुंचता है तो अस्पताल में उसका कार्ड ब्लॉक नहीं हो रहा है, क्योंकि एंजियोप्लास्टी का पैकेज 50 रूपए से अधिक का है. पहले ये व्यवस्था होती थी कि इसे ब्लॉक कर लिया जाता था और बाकी की राशि मरीज अस्पताल में कैश दे देता था, अब उसे एंजियोप्लास्टी की पूरी राशि देनी पड़ रही है. हालांकि जिन बीमारियों में ऑपरेशन के लिए मरीज के पास वक्त है वे मुख्यमंत्री विशेष सहायता से आवेदन कर सकता है, लेकिन इसका अप्रूवल आने के बाद ही इलाज होगा और इमरजेंसी में मरीज इलाज नहीं करा सकता.
इसके अलावा पहले मरीज के पास अपना आयुष्मान कार्ड अस्पताल में जमा कराने के लिए 72 घंटे का वक्त होता था, जिसे घटाकर अब 48 घंटे कर दिया गया है.
वहीं एक बार यदि मरीज अस्पताल में भर्ती हो गया और अस्पताल को एक्सटेंशन अप्रूवल की जरूरत पड़ी तो पहले 6 घंटे में ये अप्रूवल आ जाता था, लेकिन अब 24 से 48 घंटों में ये अप्रूवल आ रहा है. इसे ऐसे समझे कि क्रिटिकल स्थिति में मरीज को आईसीयू में भर्ती कराया गया और डॉक्टर को प्रारंभिक जांच के बाद ये लगा कि मरीज को 3 दिन के आईसीयू केयर की जरूरत है और उसने इसके मुताबिक ही पैकेज ब्लॉक किया. लेकिन तीन दिनों बाद उसे और भर्ती रखने की जरूरत पड़ी तो उसे एक्सटेंशन अप्रूवल की जरूरत पड़ेगी और यही अनुमति पहले 6 घंटे में आ जाती थी, जो अब 24 से 48 घंटों में आ रही है.
मरीज पहले अपने मोबाइल से आयुष्मान कार्ड की ई-कॉपी डाउनलोड कर सकता था, लेकिन अब ये कार्ड अधिकृत सेंटर या अस्पताल से ही बनेगा.
अस्पतालों को क्या-क्या आ रही समस्याएं ?
अब अस्पतालों को एक रजिस्ट्रेशन में एक बार ही मरीज का इलाज करना होगा. यदि मरीज को दूसरे डिपार्टमेंट में इलाज की जरूरत पड़ी तो अस्पताल को पहले उसे डिस्चार्ज दिखाना होगा और फिर बाद में पुनः रजिस्ट्रेशन करना होगा. उदारहण के तौर पर यदि मलेरिया की गंभीर समस्या के बाद यदि कोई मरीज अस्पताल में भर्ती होता है और इलाज के दौरान ही मरीज का यूरीन आना बंद हो जाता है और उसे डायलिसिस की जरूरत पड़ती है तो डॉक्टरों को उसे पहले डिस्चार्ज करना होगा और पुनः डायलिसिस के लिए रजिस्ट्रेशन और अप्रूवल की जरूरत पड़ेगी और यदि डॉक्टर ने बिना अप्रूवल मरीज का इलाज किया और बाद में ये रिजेक्ट हुआ तो अस्पताल का नुकसान होगा और यदि बिना अप्रूवल के इलाज किया तो कार्ड होते हुए भी मरीज को अस्पताल का भुगतान करना होगा.
डॉक्टरों के लिए Hem 2.0 में क्या-क्या समस्याएं है ?
अब इस पोर्टल में एक डॉक्टर एक ही अस्पताल में आयुष्मान से इलाज के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते है. हालांकि जिन डॉक्टरों के पुराने रजिस्ट्रेशन है उन्हें अभी कोई समस्या नहीं हो रही है, लेकिन जिन डॉक्टरों को अब नए अस्पतालों में जुड़ना है उन्हें ये समस्याएं हो रही है. इसके अलावा अस्पतालों को भी अपने अस्पताल की लिस्ट में किसी नए डॉक्टर को जोड़ने में समस्याएं हो रही है. हालांकि ये स्पष्ट नहीं हो सकता है कि नए नियम के मुताबिक ऐसा हो रहा है या पोर्टल में दिक्कत है. पुराने नियमों के मुताबिक एक डॉक्टर 3 अस्पताल में आयुष्मान से इलाज में अपना नाम दे सकते थे, हालांकि सुपर स्पेशियालिटी के लिए इसकी कोई बाध्यता नहीं है, क्योंकि उनकी संख्या प्रदेश में काफी कम है.
वहीं उन अस्पतालों को भी दिक्कतें हो रही है जिनके पास एनएबीएच का सर्टिफिकेट है और उन्हें नए पोर्टल में उसे अपग्रेड करना है, क्योंकि इसके लिए उन्हें नियमों के मुताबिक अतिरिक्त राशि मिलती है. इसके अलावा अब नए अस्पतालों को इस पोर्टल में रजिस्ट्रेशन के लिए जितनी ओटी होगी उतने एनस्थेटिस्ट की जरूरत होगी. हालांकि कुछ डॉक्टरों का कहना है कि सरकार की कुछ पाबंदिया मरीजों के लिहाज से ठीक है, लेकिन कुछ अस्पतालों का कहना है कि जो डॉक्टर ईमानदारी से अधिक से अधिक अस्पतालों तक पहुंचकर ईलाज करना चाह रहे है उनका क्या ?
एक सूत्र ने बताया कि प्रदेश में आलम ये है कि अब इस खेल में एक नया स्कैम शुरू हो गया. जिसमें एमबीबीएस डॉक्टर अब अपना नाम देनकर 10 से 15 हजार और एमडी या एमएस डॉक्टर 50-60 हजार रुपए प्रतिमाह की डिमांड करने लगे है.