रायपुर. मानव देह में तीन प्रकार के ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो प्राणी जगत में हमारे विकासवादी मूल की ओर इशारा करते हैं. चक्र को क्रियाकलापों का केंद्र माना जाता है, जो जीवन शक्ति ऊर्जा को ग्रहण करता है, आत्मसात करता है और अभिव्यक्त करता है. चक्र का शाब्दिक अनुवाद चक्का या कुंडल है और यह चक्कर काटते जैविक ऊर्जा क्रियाकलापों का वृत्त है जो प्रमुख तंत्रिका गैंगलिया जिसे नाड़ीग्रंथी या गण्डिका कहते हैं. इससे निकलकर मेरूदंड में शाखाओं में बंट कर आगे बढ़ता है. सामान्य तौर पर इनमें से छह चक्रों के लिए कहा जाता है कि यह ऊर्जा के एक स्तंभ की तरह खड़ा होता है जो मेरूदंड के आधार से उठता हुआ माथे के मध्य तक विस्तृत होता है.
मेरूदंड का हरेक चक्र, शारीरिक कार्यकलापों को प्रभावित और यहां तक कि नियंत्रित करता हैं. सूक्ष्म देह, आपकी ऊर्जा क्षेत्र और संपूर्ण चक्र तंत्र का आधार प्राण है, जो कि ब्रह्मांड में जीवन और ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है. जिस भी व्यक्ति में इन तीन प्रकार की ऊर्जा का संतुलन होगा वह व्यक्ति जीवन में शांत, समृद्ध और संतुष्ट होगा. यदि तीन प्रकार के चक्र व्यवस्थित नहीं हो तो जीवन में अशांति का वास होता है. जिस प्रकार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में त्रिकोण स्थान अर्थात् लग्न, पंचम एवं भाग्य स्थान के ग्रह और उसके स्थान के कारक ग्रहों का संयोग अनुकूल तथा उच्च होगा ऐसा व्यक्ति जीवन में सफल, संतुष्ट और शांत होगा.
यदि इन स्थानों पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि अथवा युति हो या इन ग्रहों के साथ राहु जैसे क्रूर ग्रह बैठ जाए तो ऐसा व्यक्ति कर्म, प्रयास और लाभ इन तीनों प्रकार से संतुलन ना बैठा पाने के कारण उर्जा शक्ति का संपूर्ण ग्रहण, आत्मसात तथा अभिव्यक्ति का संतुलन नहीं बना पाता है और असफल, असंतुष्ट रहता है. यदि किसी व्यक्ति को इस प्रकार से असंतुष्टि हो तो उसे त्रिकोण चक्र की संतुष्टि करानी चाहिए, जिसके लिए त्रिदेव की पूजा, अ, ओ, म अर्थात् ॐ का उच्चारण करना अथवा मंत्रजाप करना चाहिए.
इसके अलावा त्रिक रत्न का धारण करना, प्रणव की प्रियता के लिए यज्ञ करना चाहिए. यह पूजा विशेषकर सोमवार को करना चाहिए क्योंकि इस दिन भगवान शिव जी की विशेष कृपा रहती है और ओम का जाप करने का विशेष फल मिलता है. इसके साथ ही शिवलिंग में दूध से अभिषेक करें, शिव चालीसा का पाठ करें एवं चावल एवं चीनी का दान करें तो मनचाही शांति प्राप्त होगी.