Dheenga Ganwar Mela 2025: अगर आप सिर्फ मेले में घुमने और झूला-झुलने जाते हैं… तो आज हम एक ऐसे मेले के बारे में बताते हैं जहां, बेत यानी बांस की छड़ी खाने पर आपकी शादी जल्द हो सकती है. हां, कुछ ऐसी ही मान्यता है राजस्थान के जोधपुर में आयोजित होने वाले धींगा गंवर मेले की. इस साल इस मेले में ये परंपरा 16 अप्रैल को निभाई जाने वाली है.

गणगौर पर्व की आखिरी रात जोधपुर शहर के भीतरी इलाकों में धींगा गंवर मेला लगता है. इस मेले में पूरी रात महिलाओं का ही राज होता है. विदेशों में जिस तरह कार्निवाल होते हैं, वैसे ही यहां महिलाएं समूह में अलग-अलग वेष में बेंत लेकर सड़कों पर घूमती हैं और कुवारों को बेंत से मारती हैं. इसे बेंतमार गणगौर के नाम से भी जाना जाता है.मान्यता है कि तीजणियों (व्रत करने वाली महिलाओं) की बेंत पड़ने से कुवारे लड़कों की जल्दी ही शादी लग जाती है.
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह परंपरा नई नहीं, बल्कि सदियों पुरानी है.बताया जाता है कि पहले के समय में यहां भाभियां अपने देवरों को चिढ़ाने के लिए बेत से मारती थीं, ताकि सबको पता चले कि लड़का कुंवारा है और उसकी शादी की बात चल रही है. इस दौरान आस-पास की औरतें भी खुशी में उन्हें बेंत से मारती थीं और कहती थीं, ‘बात पक्की समझो’.अब यह रस्म एक त्यौहार का रूप ले चुकी है. कुवांरे लड़के भी इसमें बड़े उत्साह से भाग लेते हैं और बेंत से मार खाने पर कोई नाराज भी नहीं होता. इसके विपरीत, कुछ तो जानबूझकर बेंत खाने के लिए आगे आ जाते हैं.
नारी शक्ति को समर्पित इस मेले की तैयारियां भी पूरी हो चुकी है. विदाई महोत्सव में रतजगे की रात स्वांग रचकर गवर दर्शनार्थ पहुंचने वाली तीजणियों के स्वागत एवं पारम्परिक सांस्कृतिक कार्यक्रम, अनुष्ठान गीत- नृत्य की इन्द्रधनुषी छटा देखने को मिलेगी. इस दौरान महिलाएं अपने समूहों के साथ पारंपरिक गंवर गीत भी गाती हैं.
जानिए कौन थी धींगा गंवर
धींगा गवर को खासतौर पर मारवाड़ अंचल में ही पूजा जाता है. ईसर और गणगौर शिव पार्वती के प्रतीक हैं, तो वहीं धींगा को ईसर की दूसरी पत्नी के रूप में जाना जाता है. मान्यता है कि धींगा गवर नाम की एक भीलणी थी, जो बहुत जल्द विधवा हो गई थीं. विधवा होने के बाद वे ईसर के शरण आ गई थी, जिसे इसर ने स्वीकारा. इसलिए विवाहित महिलाओं के साथ-साथ विधवा औरतें भी इस व्रत करती हैं, ताकि उन्हें भी बाद में इसर जैसा पति मिले.
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