सत्यपाल राजपूत, रायपुर. गर्मी की छुट्टी के बाद 26 जून से छत्तीसगढ़ में स्कूल खुल रहे हैं. शिक्षा सत्र का प्रारंभ होने जा रहा है, विद्यार्थियों को जोर शोर से प्रवेश उत्सव मनाने की तैयारी भी लगभग हो गई है. लेकिन इस बीच चौंकाने वाली बात सामने आई है, जो शिक्षा विभाग की लचर कार्यप्रणाली को उजागर करता है. एक सप्ताह के बाद स्कूल खुलने को है. प्रदेश के 610 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं, यानी कुल 610 स्कूल शिक्षक विहीन है. तो वहीं प्रदेश के 5500 स्कूल एक शिक्षक के भरोसे संचालित हो रहे हैं. इस बीच प्रवेश उत्सव की बात शिक्षा में गुणवत्ता की बात अधिकारी कर रहे हैं.

यहां के विद्यार्थियों की क्या गलती ?

ऐसे स्कूल की बात करें जहां केवल एक ही शिक्षक हैं, तो पूरे प्रदेश में ऐसे स्कूल बस्तर में सबसे ज्यादा 428 और कोंडागांव में 417 स्कूल हैं.

प्रारंभिक व्यवस्था नही!

प्रदेश में ऐसा कोई जिला नहीं, जहां एकल शिक्षक स्कूल न हो. सबसे ज्यादा समस्या बस्तर इलाके में है. रायपुर की बात करें तो यहां 27 और बिलासपुर में 109 स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. बगैर शिक्षक के स्कूल की आप कल्पना भी नहीं कर सकते, लेकिन इसे शिक्षा विभाग साकार कर रहा है.

छत्तीसगढ़ के दो जिले कबीरधाम और जांजगीर-चांपा को छोड़कर सभी जिलों में शिक्षकविहीन स्कूल हैं. धमतरी में सबसे ज्यादा 112 स्कूल बगैर टीचर के चल रहे हैं. बिलासपुर में ऐसे 16 स्कूल है. विसंगति ये है कि एक ओर ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, तो दूसरी ओर शहरी क्षेत्र के स्कूलों में स्वीकृत पदों से ज्यादा शिक्षक हैं. ऐसे शिक्षकों की संख्या 6406 है.

एक तरफ कमी, दूसरी तरफ जरूरत से अधिक शिक्षक

एक तरफ ग्रामीण क्षेत्रों के 610 स्कूलों में शिक्षक ही नहीं है और दूसरी तरफ शहरों में एक ही पद पर कई शिक्षक पदस्थ हैं. रायपुर जिले में ही 886 अतिरिक्त (Extra) शिक्षक हैं, वहीं महासमुंद में 804, राजनांदगांव 430, बिलासपुर में 367,  दुर्ग में 264, जांजगीर चापा में 226, और कबीरधाम में 220 शिक्षक अतिरिक्त पदस्थ हैं.

स्कूलों में तालाबंदी के बाद भी समस्या यथावत

विद्यार्थियों के परिजन रामू यादव, रामचरण साहू, केशव प्रसाद ने कहा अगर हमारी क्षमता होती तो हम प्राइवेट स्कूल में पढ़ा लेते. सभी को समान शिक्षा का अधिकार है, इसलिए स्कूल खोला जाता है. बच्चों को शिक्षा मिले लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत लापरवाही के कारण आज इन स्कूलों में शिक्षक नहीं है. स्कूलों में शिक्षकों की कमी के कारण छत्तीसगढ़ में तालाबंदी की खबर तो आपने सुनी ही होगी.. लेकिन शिक्षा विभाग जिनके कंधों पर बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी है, वही भविष्य डुबाने में लगी है. हम कल्पना नहीं कर सकते, कि बगैर शिक्षक के एक स्कूल भी हो सकता है. लेकिन शिक्षा विभाग वास्तविकता में हमें दिखा रहा है. हजारों लाखों बच्चों के भविष्य दांव पर लगा है.

लेन-देन कर ट्रान्सफर पोस्टिंग

शिक्षाविदों का कहना है कि आधी अधूरी तैयारी में जंग लड़ने जाएंगे तो क्या हालत होगी, हम सभी जानते हैं. वैसे ही शिक्षा विभाग  बगैर शिक्षक के स्कूल खोलने को तैयार है और स्कूल खोला जा रहा है. यह समस्या कई सालों से है. एक तरफ अधिक शिक्षक हैं, दूसरी तरफ शिक्षक ही नहीं है… यह शिक्षा व्यवस्था की गलती है, कि वह सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाए. शिक्षा विभाग में  ट्रांसफर पोस्टिंग का अंधा खेल चलता है. एक वजह यह भी है. आज हम देख रहे हैं कि शहरों में कार्यरत एक्स्ट्रा टीचर गांव में रहना नहीं चाहते..

प्रतिनियुक्ति का खेल

पिछली सरकार ने आनन-फानन में स्वामी आत्मानंद स्कूलों की झड़ी लगा दी. लेकिन शिक्षकों की भर्ती नहीं के बराबर हुई. सरकार के हर हंटर के सामने अधिकारी भी सरेंडर थे. अब सरकार के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के स्कूल में शिक्षकों की कमी नहीं होने दी गई. जिस सरकारी स्कूल से अच्छे गणित, अंग्रेजी और विज्ञान के शिक्षक मिले, सभी को प्रतिनियुक्ति में आत्मानंद में भर दिया गया. आज तक उनके पद खाली हैं और वहां बच्चे इन शिक्षकों की राह ताक रहे हैं.

अनुशंसा और अप्रोच का दुष्परिणाम

आज अतिरिक्त शिक्षकों का जो आंकड़ा सामने आया है, सैकड़ों की संख्या में शहरी क्षेत्र में पदस्थ शिक्षकों की है. इसके पीछे का कारण अनुशंसा और अप्रोच है.

प्राइवेट स्कूलों को फायदा

समाज का हर वर्ग चाहता है कि उसके बच्चे पढ़ें और आगे बढ़ें, अपने भविष्य को गढ़े. लेकिन आर्थिक स्थिति इस सपना में रोड़ा बन जाता है. कई कर्ज़ लेकर प्राइवेट स्कूल की ओर भागते हैं तो कई सरकारी स्कूलों में ही संतुष्ट होते हैं. लेकिन बिना शिक्षक के स्कूलों का जो आंकड़ा सामने आ रहा है, ऐसे में न चाहते हुए भी पालक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने को मजबूर हो जाएंगे.

क्या कहते हैं विभागीय अधिकारी ?

स्कूल खुलने से पहले इस समस्या का समाधान होगा या नहीं, या इस तरह ही बच्चों के भविष्य दांव में लगा दिए जाएंगे…ये जानने के लिए लल्लूराम डॉट कॉम ने शिक्षा विभाग के सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी को लगातार कॉल किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

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