रायपुर। डायन या टोनही की धारणा हमारे देश में प्रमुख अंधविश्वासों में से एक है जिसमें किसी महिला को डायन (टोनही) घोषित कर दिया जाता है और उस पर जादू-टोना कर बीमारी फैलाने, गांव में विपत्तियां लाने का आरोप लगाकर उसे लांछित किया जाता है. डायन (टोनही) के रूप में आरोपित इन महिलाओं को न केवल सार्वजनिक रूप से बेइज्जत किया जाता है, बल्कि उन्हें शारीरिक प्रताडऩा दी जाती है तथा समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है. ऐसे मामलों में शारीरिक प्रताडऩा इतनी अधिक होती है कि वे महिनों शारीरिक जख्मों का दर्द लिये कराहती रहती है तथा गाँव में उन्हें उपचार मिलना भी संभव नहीं होता.

सार्वजनिक रूप से बेइज्जती और अपमान के जख्म तो आजीवन दुख देते हैं, इन स्थानों पर प्रभावशाली समूह का दबाव इतना अधिक रहता है कि प्रताडऩा की घटनाओं की जानकारी गांव के बाहर नहीं जा पाती और प्रताडि़त महिला के साथ उसका परिवार नारकीय जीवन जीता रहता है, ऐसे मामलों में कई बार महिलाएं आत्महत्या तक कर लेती है. डायन (टोनही) के संदेह में प्रताडऩा के मामले में गांवों के जनप्रतिनिधि और शासकीय कर्मचारी भी सामने आने का साहस नहीं कर पाते, ऐसे अधिकांश मामलों में जो जानकारी ही गाँवों से बाहर नहीं आ पाती, जिससे कथित बैगाओं का राज कायम हो जाता है.

Image Source : Movie, The Dark secrets of Tonhi (2014)

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कथित बैगा गांव में सभी विपदाओं का कारण जादू-टोना व डायन (टोनही) बताकर, टोनही पकड़वाने, चिन्हित करने, गांव बांधने के नाम पर न केवल मनमानी राशि वसूलते हैं बल्कि किसी भी गरीब बेकसूर महिला को डायन (टोनही) घोषित कर हमेशा अभिशप्त जीवन जीने व प्रताडऩा सहने के लिये छोड़ देते हैं, इन बैगाओं द्वारा महिला को डायन (टोनही) न होने का प्रमाण देने के लिये ऐसी परीक्षाएं ली जाती है जो किसी भी महिलाओं के लिये संभव नहीं है. ऐसे मामलों में खुद को निर्दोष साबित करना बहुत मुश्किल हो जाता है वह भी जब पूरा गांव ही अंधविश्वास के कारण विरोध में खड़ा हो, जबकि वास्तविकता यह है कि डायन (टोनही) के रूप में घोषित की जाने वाली महिला में इतनी ताकत नहीं होती है कि आत्मरक्षा ही कर सके, दूसरों के नुकसान करना तो संभव ही नहीं है.

हम पिछले 28 वर्षों से समाज में फैले अंधविश्वासों एवं सामाजिक कुरीतियों के निर्मूलन के लिए अभियान चला रहे हैं जिसका एक प्रमुख हिस्सा डायन (टोनही) की धारणा का निर्मूलन भी है, इसलिये व्याख्यान, चमत्कारिक घटनाओं की वैज्ञानिक धारणा, विभिन्न ग्रामों में दौरा कर समझाना, अंधविश्वास का पर्याय बनने वाले मामलों की जाँच व सत्य की जानकारी, गोष्ठियां, बैठकें की जाती है. वहीं सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति के भी अनेक मामले लगातार सामने आते रहते हैं,जिससे हजारों परिवार परेशान है उन्हें समाज में वापस लौटाने के लिए भी निरंतर प्रयास किया जाता है.

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हमें कई बार विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न स्थानों के बुद्धिजीवी साथियों, छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, समाज-सुधार के संबंध में विचार पढऩे को मिलते हैं, मेरा यह मानना है कि अंधविश्वासों एवं सामाजिक कुरीतियों का समूल निर्मूलन किसी एक व्यक्ति, एक संगठन या प्रशासन के लिये संभव नहीं है. अलग-अलग स्थानों पर निवास व कार्य कर रहे सभी व्यक्ति यदि इस कार्य के लिये अपना थोड़ा समय व बहुमूल्य विचार हमें प्रदान करें, व सहयोग से कार्य करें तो ऐसा कोई भी कारण नहीं है कि इन कुरीतियों व अंधविश्वासों का निर्मूलन न किया जा सके, नये वर्ष में सर्व सहयोग से यह काम बेहतर ढंग से किया जा सकता है. इच्छुक स्वयंसेवी व्यक्ति व उत्साही कार्यकर्ता मुझसे इस पते पर सम्पर्क कर सकते हैं.

डॉ. दिनेश मिश्र (वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ) अध्यक्ष – अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति, मोबाईल नं. 98274-00859

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