हिंदू धर्म में संध्या आरती का विशेष महत्व है, जो प्रतिदिन सूर्यास्त के समय की जाती है. मंदिरों में गूंजती घंटियों, शंखनाद और दीपों की रौशनी से वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है. लेकिन एक पारंपरिक मान्यता के अनुसार, जब मंदिरों में संध्या आरती हो रही हो, उस समय घरों में पूजा या आरती नहीं की जाती. आखिर क्या है इसके पीछे की मान्यता और भावना?

परंपरा और मान्यता

धार्मिक विद्वानों के अनुसार, संध्या आरती का समय ब्रह्मांडीय ऊर्जा के संतुलन का क्षण होता है. ऐसा माना जाता है कि जब किसी मंदिर में आरती हो रही होती है, तब उस आरती में पूरे क्षेत्र की ऊर्जा केंद्रित होती है. ऐसे में यदि कोई व्यक्ति उसी समय अपने घर में आरती करता है, तो उसकी पूजा का प्रभाव कम हो सकता है या वह मंदिर की आरती की दिव्यता से जुड़ नहीं पाता.

एक और मान्यता के अनुसार

संध्या आरती के समय वातावरण में विशेष प्रकार की “हवा” या ऊर्जा चलती है, जिसे ‘शुभ वायु’ माना जाता है. इस ऊर्जा का संपूर्ण लाभ तभी मिलता है जब व्यक्ति मंदिर की आरती में भावपूर्वक सम्मिलित हो या उस समय पूजा से विरत रहे.

पुरोहितों की राय

स्थानीय मंदिरों के पुजारियों का कहना है कि “मंदिर की आरती सामूहिक पूजा का स्वरूप होती है, जो संपूर्ण समुदाय के लिए की जाती है. जब वह आरती हो रही हो, तो भक्तों को चाहिए कि उस समय एकाग्रता से मंदिर की आरती को सुनें, उसमें मन लगाएं, न कि घर में अलग पूजा करें.