यदि कुंडली में राहु अशुभ हो तो इसके लक्षण जीवन में साफ तौर पर देखे जा सकते हैं. यदि राहु कुंडली में खराब हो तो घर की देहरी दब जाती है या खराब हो जाती है. नशे की तल, रात में नींद न आना, डरावने सपने आना, हर समय आशंकाओं में, बेचैनी में जीना, निर्णय न ले पाना राहु के खराब होने का इशारा है. राहु कवच से लाभ हो सकता है.

पानी, आग और ऊंचाई से डरना, बार-बार बीमार होना, परेशानियों-असफलताओं का पीछा न छोड़ना भी खराब राहु का लक्षण है. घर के पत्थरों, कांच के अचानक चटकने की घटनाएं होना. बेवजह लोगों से दुश्मनी होना, खराब राहु कई महिलाओं से संबंध बनवाता है. धन हानि कराता है. राहु का कमजोर होना जीवन में दुर्घटनाएं कराता है. Read More – ठंड में हर दिन आपकी बाइक भी पड़ जाती है बंद, तो अपनाएं ये पांच टिप्स, हमेशा आएगी काम …

राहु कवच स्तोत्र

अगर आपकी कुंडली में राहु की स्थिति अच्छी ना हो तो राहु कवच का पाठ करना बहुत ही ज्यादा फायदेमंद है. राहु कवच का पाठ मन को शांति देता है. जीवन से सभी बुराईयों को दूर रखता है और आपको स्वस्थ, धनवान और समृद्ध बनाता है. राहु कवच पाठ एक दुर्लभ कवच है. इसका नियमित पाठ करने से गृह की शांति होती है और जीवन की समस्त समस्याओं और बाधाओं से मुक्ति मिलती है. Read More – New Born Baby के जीभ की सफाई है बेहद जरूरी, सफाई के दौरान रखें कुछ जरूरी बातों का ख्याल …

राहुकवचम्

अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषि: ।
अनुष्टुप छन्द: । रां बीजं । नम: शक्ति: ।
स्वाहा कीलकम् । राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोग: ॥
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् ॥
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ॥ 1 ॥
निलांबर: शिर: पातु ललाटं लोकवन्दित: ।
चक्षुषी पातु मे राहु: श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ॥ 2 ॥
नासिकां मे धूम्रवर्ण: शूलपाणिर्मुखं मम ।
जिव्हां मे सिंहिकासूनु: कंठं मे कठिनांघ्रीक: ॥ 3 ॥
भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बर: करौ ।
पातु वक्ष:स्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुद: ॥ 4 ॥
कटिं मे विकट: पातु ऊरु मे सुरपूजित: ।
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ॥ 5 ॥
गुल्फ़ौ ग्रहपति: पातु पादौ मे भीषणाकृति: ।
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: ॥ 6 ॥
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो ।
भक्ता पठत्यनुदिनं नियत: शुचि: सन् ।
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ॥ 7 ॥
॥ इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं ॥