दशहरा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विविध रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ मनाया जाता है, लेकिन एक सामान्य उत्साह, बुराई पर अच्छाई की जीत के साथ मनाया जाता है. शमी पूजा, अपराजिता पूजा और सीमा अवलंघन कुछ अनुष्ठान हैं जिनका पालन विजयादशमी के दिन किया जाता है. ये अनुष्ठान अपराहन समय के दौरान किए जाने चाहिए.
अपराजिता-पूजा : आश्विन शुक्ल दशमी को पहले अपराजिता का पूजन किया जाता है. अक्षतादि के अष्ट दल पर मृतिका की मूर्ति स्थापना करके ‘ॐ अपराजितायै नम:’ (दक्षिण भाग में अपराजिता का), ‘ॐ क्रियाशक्तयै नम:’ (वाम भाग में जया का), ॐ उमायै नम: (विजया का) आह्वान करते हैं. Read More – छत्तीसगढ़ में माता के इस चमत्कारिक मंदिर में मिर्च से होता है हवन, जानिए क्या है इसके पीछे की वजह …
शमी पूजन : शमी (खेजड़ी) वृक्ष दृढ़ता व तेजस्विता का प्रतीक है. शमी में अन्य वृक्षों की अपेक्षा अग्नि प्रचुर मात्रा में होती है. हम भी शमी वृक्ष की भांति दृढ़ और तेजोमय हों, यही भावना व मनोभावना शमी पूजन की रही है.
शस्त्र पूजन : शस्त्र पूजन की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है. प्राचीन समय में राजा-महाराजा विशाल शस्त्र पूजन करते रहे हैं. आज भी इस दिन क्षत्रिय शस्त्र पूजा करते हैं. सेना में भी इस दिन शस्त्र पूजन किया जाता है. राजा विक्रमादित्य ने दशहरे के दिन देवी हरसिद्धि की आराधना की थी. छत्रपति शिवाजी ने भी इसी दिन मां दुर्गा को प्रसन्न करके भवानी तलवार प्राप्त की थी. Read More – द कश्मीर फाइल्स के बाद अब विवेक अग्निहोत्री लाने वाले हैं नई फिल्म Parva, कहानी महाभारत पर होगी आधारित …
सीमोल्लंघन : इतिहास में क्षत्रिय राजा इसी अवसर पर सीमोल्लंघन किया करते थे. हालांकि अब यह परंपरा समाप्त हो चुकी है, लेकिन शास्त्रीय आदेश के अनुसार यह प्रगति का प्रतीक है. यह मानव को एक परिधि से संतुष्ट न होकर सदा आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.
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