यदि आप अलग-अलग मस्जिदों में नमाज पढ़ने के शौंकीन हैं, तो भोपाल में बस जाइए। क्योंकि यहां आप हर दिन एक नई मस्जिद में जाकर नमाज भी पढ़ेंगे तो साल के दिन कम पड़ जाएंगे, लेकिन मस्जिद की संख्या नहीं। यूं तो मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल कई सारी चीजों के लिए जानी जाती है। पर क्या आपको पता है, भोपाल शहर में 10 या 20 नहीं बल्कि 550 मस्जिदें हैं।
झीलों की नगरी से जाना जाने वाला भोपाल को नवाबो ने बसाया था। इस्लाम का इस शहर से गहरा नाता है। इसकी मिसाल भोपाल की मस्जिदें है। पर्यावरण के लिए आज से सालों पहले मस्जिदों में फल और फूलदार पौधे लगाए गए थे। जो बाद में मस्जिदों की पहचान बन गए। अब उन्हीं के नामों से मस्जिदों को जाना जाता है। यहां 550 मस्जिदें हैं जिसमें से 15 मस्जिदें ऐतिहासिक हैं।
भोपाल में हैं 550 मस्जिदें
भोपाल की पहचान मस्जिदों के शहर से भी है। वर्ष 1998-99 में हुए एक सर्वे के अनुसार यहां मस्जिदों की संख्या 380 थीं। लेकिन अब 550 मस्जिदें है। एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद भी भोपाल में ही है। जिसका नाम ताज-उल-मसाजिद है। सबसे छोटी मस्जिद ढाई सीढ़ी भी उसी शहर में है। ढाई सीढ़ी मस्जिद काफी छोटी मस्जिद है। ये भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मौजूद है।
क्यों कहा जाता है ढाई सीढ़ी की मस्जिद
जानकारी के लिए बतादें कि, दोस्त मोहम्मद खां ने ढाई सीढ़ी मस्जिद का निर्माण फतेहगढ़ किले में 1726 ई. में करवाया था। जिसमें दोस्त मोहम्मद खां के मकबरे के समीप किला फतेहगढ़ के बुर्ज के ऊपर वाले हिस्से में एक छोटी सी मस्जिद का निर्माण हुआ था। सादे और साधारण स्थापत्य में बनाई गई इस मस्जिद में इबादत स्थल तक जाने के लिए ढाई सीढ़ियों का निर्माण करवाया गया था। यही कारण है जो इसे ढाई सीढ़ी की मस्जिद कहा जाता है।
फल पेड़ों के नाम पर भी हैं मस्जिद
भोपाल के जहांगीराबाद में ‘आम वाली मस्जिद’,बड़े तालाब के पास लाल इमली मस्जिद, सुलेमानिया स्कूल में केले वाली मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। वहीं कोतवाली के पीछे प्राचीन पेड़ के कारण ‘ कबीट वाली मस्जिद’ के नाम से भी एक मस्जिद है।
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