रायपुर। नोटा वह विकल्प है जो आपको किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देने का अधिकार देता है. भारत में नोटा पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 2013 में दिये गए एक आदेश के बाद शुरू हुआ. पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम भारत सरकार मामले में शीर्ष न्यायालय ने आदेश दिया कि जनता को मतदान के लिये नोटा का भी विकल्प उपलब्ध कराया जाए. इस आदेश के बाद भारत नकारात्मक मतदान का विकल्प उपलब्ध कराने वाला विश्व का 14वाँ देश बन गया. नोटा के तहत ईवीएम मशीन में नोटा (NONE OF THE ABOVE- NOTA) का गुलाबी बटन होता है. यदि पार्टियाँ गलत उम्मीदवार देती हैं तो नोटा का बटन दबा सकते हैं.

यहां हुआ पहली बार नोटा का प्रयोग

नोटा का प्रयोग भारत से पहले 1976 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में इस्ला विस्टा म्युनिसिपल एडवाइजरी काउंसिल के चुनाव में हुआ था. वहां के मतपत्र में नोटा का विकल्प दिया गया था.

वहीं भारत के अलावा एेसे कई देश हैं जहां चुनाव में नोटा प्रयोग किया जाता है. इनमें कोलंबिया, यूक्रेन, ब्राजील, बांग्लादेश, फिनलैंड, स्पेन, स्वीडन, चिली, फ्रांस, बेल्जियम, यूनान आदि देश शामिल हैं वहीं रूस में 2006 तक यह विकल्प मतदाताओं के लिए उपलब्ध था.

भारत में पहली बार नोटा का प्रयोग कब

 2013 के बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार ‘नोटा’ के इस चिह्न का ईवीएम और मत पत्रों पर इस्तेमाल किया गया. साल 2013 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद नोटा का बटन ईवीएम पर आखिरी विकल्प के रूप में जोड़ा गया था.

नोटा आवश्यक क्यों?

नोटा की माँग का उद्देश्य यह था कि लोकतंत्र में जनता को यह अधिकार दिया जाए, कि अगर वे किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते तो नोटा का बटन दबा सकते हैं. दरअसल यह विकल्प काफी प्रभावशाली है क्योंकि इससे जनता बता सकती है कि चुनाव में जिन प्रत्याशियों को उतारा गया है वे जनता को नामंजूर है.  लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है.

गौरतलब है कि बहुत से लोग किसी भी उम्मीदवार को सही नहीं मानते हुए मतदान नहीं करना चाहते फिर भी वे इसलिये ऐसा करते हैं कि कहीं उनकी जगह कोई दूसरा मतदान न कर दे, पहले उन्हें विवश होकर किसी न किसी को मत देना ही पड़ता था लेकिन नोटा आने के बाद ऐसे लोगों को विकल्प मिल गया है.

नोटा होना न होना एक समान क्यों?

सैद्धांतिक तौर पर तो नोटा एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है लेकिन वर्तमान परिस्थितियों पर नज़र डाली जाए तो नोटा उतना सफल होता दिखाई नहीं देता. दरअसल, यदि नोटा के तहत पड़े मतोंं का प्रतिशत, किसी अन्य उम्मीदवार को मिले मत के प्रतिशत से अधिक हो तब भी अन्य सभी उम्मीदवारों में जो सबसे आगे होगा वह विजयी घोषित कर दिया जाएगा. इस बिंदु पर कई विद्वान तो नोटा को लोकतंत्र के महापर्व में सिस्टम की तरफ से जनता को बाँटा गया झुनझुना तक की संज्ञा दे डालते हैं.